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भगवती सूत्र - श. ११ . १२ पुद्गल परिव्राजक
यावत् प्ररूपणा करने लगा - "हे देवानुप्रियो ! मुझे विशिष्ट ज्ञान दर्शन उत्पन्न हुआ है, जिससे मैं यह जानता और देखता हूँ कि देवलोकों में जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट स्थिति दस सागरोपम की है, इससे आगे देव और देवलोक नहीं हैं ।" इस बात को सुनकर आलभिका नगरी के लोग परस्पर जैसे शिव राजर्षि के संबंध में कहने लगे थे वैसे ही यहाँ पर भी कहने लगे कि - "हे देवानुप्रियो ! यह बात कैसे मानी जाय ?" कुछ काल बाद श्रमण भगवान् महावीर स्वामी वहाँ पधारे, यावत् गौतम स्वामी भिक्षा के लिये नगरी में गये । वहाँ लोगों से उपरोक्त बात सुनकर अपने स्थान पर आये और भगवान् से इस विषय में पूछा । भगवान् ने फरमाया- "हे गौतम! पुद्गल परिव्राजक का कथन असत्य है । में इस प्रकार कहता हूँ और प्ररूपणा करता हूँ कि देवलोकों में देवों की जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष की है, इसके बाद एक समयाधिक, द्वि समयाधिक यावत् उत्कृष्ट स्थिति तेतीस सागरोपम की है। इसके बाद देव और देवलोक व्युच्छिन्न हो गये हैं ।"
७ प्रश्न - अत्थि णं भंते! सोहम्मे कप्पे दव्वाई सवण्णाई पि अवण्णाई पि ?
७ उत्तर - तहेव जाव हंता अस्थि, एवं ईसाणे वि एवं जाव अच्चुए, एवं गेवेज्जविमाणेसु, अणुत्तरविमाणेसु वि, ईसिपव्भाराए वि जाव हंता अस्थि । तरणं सा महतिमहालिया जाव पडिगया ।
८ - तणं आलभियाए णयरीए सिंघाडग-तिय० अवसेसं जहा सिवस्स, जाव सव्वदुक्खप्पहीणे, णवरं तिदंड-कुंडियं जाव धाउरत्तवत्थपरिहिए परिवडियविन्भंगे आलभियं णयरिं मज्झंmegs, जाव उत्तरपुरत्थिमं दिसिभागं अवकमर,
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१९६९
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