SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 413
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १९६८ भगवती सूत्र--ग. ११ उ. १२ पुद्गल परिवाजक परिसा पडिगया। भगवं. गोयमे तहेव भिक्खायरियाए तहेव बहु. जणसदं णिसामेइ, तहेव० तहेव सव्वं भाणियब्वं, जाव अहं पुण गोयमा ! एवं आइक्खामि एवं भासामि जाव परूवेमि-'देवलोएसु णं देवाणं जहण्णेणं दस वाससहस्साइं. ठिई पण्णता, तेण परं समयाहिया दुसमयाहिया जाव उकोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता, तेण परं वोच्छिण्णा देवा य देवलोगा य । कठिन शब्दार्थ-सुपरिणिट्टिए-मुपरिनिष्ठित (कुशल)। ___ भावार्थ-६-उस काल उस समय में आलभिका नगरी थी (वर्णन)। वहाँ शंखवन नाम का उद्यान था। (वर्णन) उस शंखवन उद्यान से थोड़ी दूर 'पुद्गल' नामक परिव्राजक रहता था। वह ऋग्वेद, यजुर्वेद, आदि यावत् बहुत - से ब्राह्मण विषयक नयों में कुशल था। वह निरन्तर बेले-बेले की तपस्या करता हुआ आतापना भूमि में दोनों हाथ ऊँचे कर के आतापना लेता था। इस प्रकार तपस्या करते हुए उस 'पुद्गल' परिव्राजक को प्रकृति की सरलता आदि से शिव परिव्राजक के समान विभंग नामक अज्ञान उत्पन्न हुआ। उस विभंगज्ञान से पांचवें ब्रह्म देवलोक में रहे हुए देवों की स्थिति जानने देखने लगा। फिर उस 'पुद्गल' परिव्राजक को इस प्रकार का विचार उत्पन्न हुआ-"मुझे अतिशेष ज्ञानदर्शन उत्पन्न हुआ है, जिससे मैं जानता हूं कि देवलोकों में देवों की जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष की है। फिर एक समय अधिक, दो समय अधिक यावत् असंख्य समय अधिक, इस प्रकार करते हुए उत्कृष्ट स्थिति दस सागरोपम की है। उसके बाद देव और देवलोक व्युच्छिन्न हो जाते हैं,"-इस प्रकार विचार करके वह आतापना भूमि से नीचे उतरा। त्रिदण्ड, कुण्डिका यावत् भगवां वस्त्रों को ग्रहण कर आलभिका नगरी में तापसों के आश्रम में आया और वहाँ अपने उपकरण रख कर आलभिका नगरी के शृंगाटक, त्रिक, राजमार्ग आदि में इस प्रकार कहने लगा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy