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भगवती मूत्र-द. ११ . १२ श्रमणोपामन. ऋपिगद्रपुत्र को धर्मचर्चा
१९६५
देवाणुप्पियाणं अंतियं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पब्वइ.
त्तए ?
४ उत्तर-णो इणटे समटे, गोयमा ! इसिभद्दपुत्ते समणोवासए वहूहिं . सीलब्बय-गुणव्वय-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासेहिं अहा: परिगहिएहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणे बहई वासाई समणोवासगपरियागं पाउणिहिइ, व० मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झसेहिह, मा० सहि भत्ताई अणसणाए छेदेहिड, छेदेत्ता आलोइय. पडिकंते समाहिपत्ते कालमाप्ते कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे अरुणाभे विमाणे देवत्ताए उववज्जिहिइ । तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं चतारि पलिओवमाई ठिई पण्णता । तत्थ णं इसिभद्दपुत्तस्स वि देवस्स चत्तारि पलिओवमाइं ठिई भविस्सइ ।
५ प्रश्न से णं भंते ! इसिभद्दपुत्ते देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भव० ठिइक्खएणं जाव कहिं उववजिहिइ ?
५ उत्तर-गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ, जाव अंतं काहेइ । 'सेवं भंते ! सेवं भंते !' त्ति भगवं गोयमे जाव अप्पाणं भावेमाणे विहरइ । तएणं समणे भगवं महावीरे अण्णया कयाइ आलभियाओ णयरीओ संखवणाओ चेइयाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता बहिया जणवयविहार विहरइ ।
भावार्थ-४ प्रश्न-तदुपरान्त भगवान् गौतम स्वामी ने, श्रमण भगवान्
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