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भगवती सूत्र-श. ११ उ. १२ पुद्गल परिव्राजक
महावीर स्वामी को वन्दना नमस्कार कर इस प्रकार पूछा-"हे भगवन् ! क्या श्रमणोपासक ऋषिभद्रपुत्र अगारवास को त्याग कर आपके समीप अनगार प्रव्रज्या स्वीकार करने में समर्थ है ?
४ उत्तर-हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं, किन्तु बहुत से शीलव्रत, गुणवत, विरमगवत, प्रत्याख्यान और पौषधोपवासों से तथा यथा-योग्य स्वीकृत तपस्या द्वारा अपनी आत्मा को भावित करता हुआ, बहुत वर्षों तक श्रमणोपासक पर्याय का पालन करेगा । फिर मासिक संलेखना द्वारा साठ भक्त अनशन का छेदन कर, आलोचना और प्रतिक्रमण कर एवं समाधि प्राप्त कर, काल के समय काल करके सौधर्म कल्प में अरुणाभ नामक विमान में देवरूप से उत्पन्न होगा । वहाँ कितने ही देवों को चार पल्योपम की स्थिति कही गई है, उनमें ऋषिभद्रपुत्र देव की भी चार पल्योपम की स्थिति होगी।
____५ प्रश्न-हे भगवन् ! वह ऋषिभद्रपुत्र देव, उस देवलोक का आयुष्य, भव और स्थिति क्षय होने पर कहां जायगा, कहां उत्पन्न होगा?
५ उत्तर-हे मौतम ! वह महाविदेह क्षेत्र में सिद्ध होगा यावत् सभी दुःखों का अन्त करेगा।
"हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवान् ! यह इसी प्रकार है"ऐसा कहकर गौतम स्वामी यावत आला को भावित करते हुए विचरने लगे। पश्चात् किसी समय श्रमण भगवान महावीर स्वामी आलभिका नगरी के शंखवन उद्यान से निकलकर बाहर जनपद में विचरण करने लगे।
पुद्गल परिव्राजक
६-तेणं कालेणं तेणं समएणं आलभिया णामं णयरी होत्था । वण्णओ । तत्थ णं संखवणे णामं चेइए होत्था । वण्णओ । तस्स णं संखवणस्स चेइयस्स अदूरसामंते पोग्गले णामं परिवायए
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