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________________ भगवती सूत्र - ११ उ. १२ श्रमणोपासक ऋपिभद्रपुत्र की धर्म चर्चा हृदय में धारण कर वे श्रमणोपासक हर्षित एवं सन्तुष्ट हुए । उन्होंने खड़े होकर भगवान् को वन्दना नमस्कार किया और इस प्रकार पूछा - "हे भगवन् ! ऋषिभद्रपुत्र श्रमणोपासक हमें इस प्रकार कहता है यावत् प्ररूपणा करता है कि 'देव लोकों में देवों की जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष की कही गई है, इसके पश्चात् एक-एक समय अधिक यावत् उत्कृष्ट स्थिति तेतीस सागरोपम की कही गई है। इसके बाद देव और देवलोक व्युच्छिन्न हो जाते हैं,' तो हे भगवन् ! यह बात. किस प्रकार है ?" १९६४ श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने उन श्रमणोपासकों से कहा - "हे आर्यो ! ऋषिभद्रपुत्र श्रमणोपासक तुम्हें कहता है यावत् प्ररूपणा करता है कि 'देवलोकों में देवों की जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष की कही गई है यावत् समयाधिक करते हुए उत्कृष्ट स्थिति तेतीस सागरोपम की कही गई है । इसके पश्चात् देव और देवलोक व्युच्छिन्न हो जाते हैं - यह बात सत्य है । हे आर्यो ! मैं भी इसी प्रकार कहता हूँ यावत् प्ररूपणा करता हूँ कि 'देवलोकों में देवों की जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष की है यावत् उत्कृष्ट स्थिति तेतीस सागरोपन की है । इसके पश्चात् देव और देवलोक व्युच्छिन्न हो जाते हैं,' यह बात सत्य है ।" भगवान् से समाधान, सुनकर, अवधारण कर और भगवान् को वन्दन नमस्कार कर वे श्रमणोपासक, ऋषिभद्रपुत्र श्रमणोपासक के समीप आये । उसे वन्दना नमस्कार किया और उसकी सत्य बात को न मानने रूप अपने अपराध के लिये विनय पूर्वक बारंबार क्षमायाचना करने लगे । फिर उन श्रमणोपासकों ने भगवान् से कई प्रश्न पूछे, उनके अर्थ ग्रहण किये और भगवान् को वन्दना नमस्कार कर अपने-अपने स्थान पर चले गये । ४ प्रश्न - 'भंते!' त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदर, णमंसइ, वं० एवं वयासी - पभू णं भंते! इसिभद्दपुत्ते समणोवासए Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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