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१९५८
भगवती सूत्र-स. ११ उ. ११ महाबल चरित्र
बहुत दूर, अम्बड़ के समान यावत् ब्रह्मदेवलोक में देवपने उत्पन्न हुआ। वहाँ कितने ही देवों की दस सागरोपम की स्थिति कही गई है, तदनुसार महाबल देव की भी दस सागरोपम की स्थिति कही गई है । 'हे सुदर्शन ! पूर्वभव में तेरा जीव महाबल था । वहाँ ब्रह्म देवलोक को दस सागरोपम की स्थिति पूर्ण कर और देवलोक का आयुष्य, भव और स्थिति का क्षय होने पर वहां से चवकर सोधे इस वाणिज्यग्राम नगर के सेठ कुल में तू पुत्र रूप से उत्पन्न हुआ है।'.
३५-तएणं तुमे सुदंसणा ! उम्मुक्कवालभावेणं विण्णायपरिणयमेत्तेणं जोवणगमणुप्पत्तेणं तहारूवाणं थेराणं अंतियं केवलिपण्णते धम्मे णिसंते, सेवि य धम्मे इच्छिए, पडिच्छिए, अभिराइए; तं सुठ्ठणं तुम मुदसणा ! इयाणि पकरेसि । मे तेणटेणं सुदंसणा ! एवं वुच्चइ-अस्थि णं एएसिं पलिओवम-सागरोवमाणं खण्इ वा अवचएइ वा। तएणं तस्स सुदंसणस्स सेद्विस्स समणस्म भगवओ महावीरस्त अंतियं एयमढे सोचा णिसम्म सुभेणं अज्झवसाणेणं सुभेणं परिणामेणं लेस्साहिं विसुज्झमाणीहिं तयावरणिज्जाणं कम्माणं खओवप्तमेणं ईहा-पोह मग्गण-गवेसणं करेमाणस्स सण्णीपुटवजाई. सरणे समुप्पण्णे, एयमट्ट सम्म अभिसमेइ । तएणं से सुदंसणे सेट्टी समणेणं भगवया महावीरेणं संभारियपुटवभवे दुगुणाणीयसइटसंवेगे आणंदंसुपुण्णणयणे ममणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेड़, आ० वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी
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