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________________ भगवती सूत्र-ग. ११ उ. ११ महावल परित्र १५५७ वाणियग्गामे णयरे मेट्टिकुलंसि पुत्तत्ताए पञ्चायाए । कठिन शब्दार्थ-वृत्तपडिवृत्तया-उत्तर-प्रत्युत्तर । भावार्थ-३४-दर्शनार्थ जाते हुए बहुत से मनुष्यों का कोलाहल सुनकर जमालिकुमार के समान महाबलकुमार ने अपने कञ्चुकी पुरुषों को बुलाकर इसका कारण पूछा । कञ्चुको पुरुषों ने महाबलकुमार से हाथ जोड़कर विनय पूर्वक निवेदन किया-'हे देवानप्रिय ! तीर्थङ्कर विमलनाथ भगवान के प्रशिष्य धर्मघोष अनगार यहां पधारे हैं।' महाबलकुमार भी वन्दना करने गया और केशी स्वामी के समान धर्मघोष अनगार ने धर्मोपदेश दिया । धर्मोपदेश सुनकर महाबलकुमार को वैराग्य उत्पन्न हुआ। घर आकर माता-पिता से कहा-'हे माता-पिता ! में धर्मघोष अनगार के पास, अनगार-धर्म स्वीकार करना चाहता हूँ। जमालिकुमार के समान महाबल कुमार और उसके माता-पिता में उत्तरप्रत्युत्तर हुए, यावत् उन्होंने कहा-'हे पुत्र ! यह विपुल धन और उत्तम राजकुल में उत्पन्न हुई, कलाओं में कुशल, आठ बालाओं को छोड़कर तुम कैसे दीक्षा. लेते हो, इत्यादि यावत् माता-पिता ने अनिच्छापूर्वक महाबलकुमार से इस प्रकार कहा-" हे पुत्र ! हम एक दिन के लिये भी तुम्हारी राज्य-लक्ष्मी को देखना चाहते हैं।" माता-पिता की बात सुनकर महाबलकुमार चुप रहे । इसके पश्चात् माता-पिता ने ग्यारहवें शतक के नौवें उद्देशक में वणित शिवभद्र के समान, महाबल का राज्याभिषेक किया और महाबल कुमार को जय-विजय शब्दों से वधाया, तथा इस प्रकार कहा-'हे पुत्र ! कहो हम तुम्हें क्या देवें ? तुम्हारे लिये क्या करें,' इत्यादि वर्णन जमालि के समान जानना चाहिये । महाबलकुमार ने धर्मघोष अनगार के पास प्रव्रज्या अंगीकार कर सामायिक आदि चौदह पूर्वी का ज्ञान पढ़ा और उपवास, बेला, तेला आदि विचित्र तप द्वारा आत्मा को भावित करते हुए सम्पूर्ण बारह वर्ष तक श्रमण-पर्याय का पालन किया और मासिक संलेखना से साठ भक्त अनशन का छेदन कर, आलोचना प्रतिक्रमण कर, एवं समाधि युक्त काल के समय काल करके ऊर्ध्वलोक में चन्द्र और सूर्य से भी ऊपर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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