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१९५४
भगवती सूत्र - श. ११ उ. ११ महाबल चरित्र
धारिणी दासियाँ, आठ क्षीर धात्रियाँ ( दूध पिलाने वाली धाय), यावत् आठ अधात्रियाँ, आठ अंगमर्दिका ( शरीर का अल्प मर्दन करने वाली दासियाँ), आठ उन्मदिका ( शरीर का अधिक मर्दन करनेवाली दासियाँ), आठ स्नान कराने वाली दासियाँ, आठ अलङ्कार पहनाने वाली दासियाँ, आठ चन्दन घिसने वाली दासियाँ, आठ ताम्बूलचूर्ण पीसने वाली, आठ कोष्ठागार की रक्षा करने वाली, आठ परिहास करने वाली, आठ सभा में पास रहने वाली, आठ नाटक करने वाली, आठ कौटुम्बिक ( साथ जाने वाली ), आठ रसोई बनाने वाली, आठ भण्डार की रक्षा करने वाली, आठ तरुणियाँ, आठ पुष्प धारण करने वाली ( मालिन), आठ पानी भरने वाली, आठ बलि करने वाली, आठ शय्या बिछाने वाली, आठ आभ्यन्तर और आठ बाह्य प्रतिहारियाँ, आठ माला बनाने वाली और आठ पेषण करने वाली दासियाँ दी। इसके अतिरिक्त बहुतसा हिरण्य, सुवर्ण कांस्य, वस्त्र तथा विपुल धन, कनक यावत् सारभूत धन दिया, जो सात पीढ़ी तक इच्छा पूर्वक देने और भोगने के लिये पर्याप्त था । इसी प्रकार महाबल कुमार ने भी प्रत्येक स्त्री को एक-एक हिरण्य कोटि एक-एक स्वर्ण कोटि, इत्यादि पूर्वोक्त सभी वस्तुएँ दी, यावत् एक-एक पेषणकारी दासी, तथा बहुतसा हिरण्य-सुवर्णादि विभक्त कर दिया । वह महाबल कुमार, नौवें शतक के तेतीसवें उद्देशक में कथित जमालि कुमार के वर्णन के अनुसार उस उत्तम प्रासाद में अपूर्व भोग भोगता हुआ रहने लगा ।
३३- तेणं कालेणं तेणं समएणं विमलस्स अरहओ पओप्पए धम्मघोसे णामं अणगारे जासंपण्णे, वण्णओ जहा केसिसामिस्स, जाव पंचहिं अणगारसएहिं सधि संपरिवुडे पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे गामाणुग्गामं दूइज्जमाणे जेणेव हत्थिणाउरे णयरे, जेणेव सहसंबवणे
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