SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 400
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती सूत्री . १. द. ११ महायल परित्र उजाणे तेणेव उवागन्छड़, उवागन्छित्ता अहापडिरूवं उरगहं ओगिण्हड़, ओगिरिहत्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहाइ । तएणं हस्थिणाउरे णयरे सिंघाडगतिय० जाव परिसा पज्जुवासइ । . फटिन शब्दार्थ-पओप्पए-प्रपात्र-शिष्य । भावार्थ-३३-उस काल उस समय में तेरहवें तीर्थंकर भगवान् विमलनाथ स्वामी के प्रपौत्र (प्रशिष्य-शिष्यानुशिष्य) धर्मयोप नामक अनगार थे। वे जाति-सम्पन्न इत्यादि केशी स्वामी के समान थे, यावत् पांच सौ साधुओं के परिवार के साथ अनुक्रम से एक गांव से दूसरे गांव विहार करते हुए हस्तिनापुर नगर के सहस्रान वन नामक उद्यान में पधारे और यथायोग्य अवग्रह ग्रहण करके संयम और ता से अपनी आत्मा को भावित करते हुए विचरने लगे। हस्तिनापुर निवासियों को मुनि आगमन ज्ञात हुआ, यावत् पर्युपासना करने लगी। ३४-तएणं तस्स महब्बलस्स कुमारस्स तं महयाजणसदं वा जणबृहं वा एवं जहा जमाली तहेव चिंता, तहेव कंचुइजपुरिसं सद्दावेइ, कंचुइज्जपुरिसो वि तहेव अक्खाइ, णवरं धम्मघोसस्स अणगारस्म आगमणगहियविणिच्छए करयल० जाव णिग्गच्छइ । एवं खलु देवाणुप्पिया ! विमलस्स अरहओ पउप्पए धम्मघोसे णामं अणगारे, असं तं चेव जाव सो वि तहेव रहवरेणं णिग्गच्छइ । धम्मकहा जहा केसिसामिस्स । सो वि तहेव अम्मापियरं आपुच्छइ, णवरं धम्मयोसस्स अणगारस्स अंतियं मुंडे भक्त्तिा अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए, तहेव वुत्तपडिवुत्तया, गवरं इमाओ य ते जाया ! Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy