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भगवती सूत्र-श. ११ उ. ११ महावल चरित्र
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इव वण्णओ जहा रायप्पसेणइज्जे, जाव पडिरूवे, तेसि णं पासायवडेंसगाणं बहुमज्झदेसभागे एत्थ णं महेगं भवणं करेंति अणेगखंभसयसंणिविटुं, वण्णओ जहा रायप्पसेणइजे पेच्छाघरमंडवंसि जाव पडिरूवे ।
भावार्थ-३०-जब महाबल कुमार आठ वर्ष से कुछ अधिक उम्र का हुआ, तो माता-पिता ने प्रशस्त, तिथि, करण, नक्षत्र और मुहर्त में पढ़ने के लिये कलाचार्य के यहाँ भेजा, इत्यादि सारा वर्णन दृढ़प्रतिज्ञ कुमार के अनुसार कहना चाहिये यावत् महाबल कुमार भोग भोगने में समर्थ हुआ। महाबल कुमार को भोग योग्य जानकर माता-पिता ने उसके लिये उत्तम आठ प्रासाद बनवाये । वे प्रासाद 'राजप्रश्नीय' सूत्र में उल्लिखित वर्णन के अनुसार अतिशय ऊंचे यावत् अत्यन्त सुन्दर थे। उनके ठीक मध्य में एक बड़ा भवन तैयार करवाया। उस भवन के सैकड़ों खम्भे लगे हुए थे, इत्यादि राजप्रश्नीय सूत्र, के प्रेक्षागृह मण्डप वर्णन के समान जान लेना चाहिये यावत् वह अत्यन्त सुन्दर था ।
३१-तएणं तं महब्बलं कुमारं अम्मापियरो अण्णया कयाइ सोभणंसि तिहि-करण-दिवस-णक्खत्त-मुहुत्तंसि व्हायं कयवलिकम्म कयकोउय-मंगलपायच्छित्तं सव्वालंकारविभूसियं पमक्खणगण्हाण-गीय-वाइय-पसाहणटुंगतिलग-कंकणअविहववहुउवणीयं मंगलमुजंपिएहि य वरकोउयमंगलोवयारकयसंतिकम्मं सरिसयाणं सरित्तयाणं सरिव्वयाणं सरिसलावण्ण-रूव-जोव्वणगुणोववेयाणं विणीयाणं कयकोउय-मंगलपायच्छित्ताणं सरिसरहिं रायकुलेहितो
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