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________________ भगवती सूत्र - श. ?? उ. ११ महावल चरित्र करणं वा परंगामणं वा पजंपावणं वा कण्णवेहणं उवणयणं च अण्णाणि य या करेंति । अणुपुव्वेणं ठिवडियं वा चंदसूरदंसावणियं वा जागरियं वा णामपयचंक्रमणं वा जेमामणं वा पिंडवद्वणं वा वा संवच्छरपडिलेहणं वा चोलोयणगं च वहूणि गव्भाधाण - जम्मणमाइयाई कोउ - कठिन शब्दार्थ - पिंडवद्धणं- भोजन बढ़ाना, कण्णवेहणं कर्ण वेधन, चोलोयणगंचोटी रखवाना, उवणयणं - संस्कारित करना, कोउयाइं - कौतुक | भावार्थ - २९ - महाबलकुमार का -१ क्षीरधात्री, २ मज्जनधात्री, ३ मण्डनधात्री, ४ क्रीडनधात्री और ५ अंकधात्री - इन पांच धात्रियों द्वारा राजप्रश्नीय सूत्र में वर्णित दृढ़प्रतिज्ञ कुमार के समान पालन किया जाने लगा । वह कुमार, वायु और व्याघात रहित स्थान में रही हुई चम्पक वृक्ष के समान अत्यन्त सुख •पूर्वक बढ़ने लगा | महाबल कुमार के माता-पिता ने अपनी कुल-मर्यादा के अनुसार जन्म-दिन से लेकर क्रमशः सूर्य-चन्द्र दर्शन, जागरण, नामकरण, घुटनों के बल चलाना, पैरों से चलाना, अन्न भोजन प्रारंभ करना, ग्रास बढ़ाना, संभाषण करना, कान बिधाना, वर्षगांठ मनाना, चोटी रखवाना, उपनयन (संस्कृत) करना, इत्यादि बहुत से गर्भधारण जन्म महोत्सव आदि कौतुक किये । १९४७ ३० - तणं तं महब्बलं कुमारं अम्मापियरो साइरेगट्टवासगं जाणित्ता सोभणंसि तिहि करण णक्खत्त मुहुत्तंसि० एवं जहा दढप्पो, जाव अलं भोगसमत्थे जाए यावि होत्था । तपणं तं महब्बलं दुमारं उम्मुकबालभावं जाव अलं भोगसमत्थं वियाणित्ता अम्मापियरो अटु पासायवडेंसए करेंति, अन्भुग्गय- मूसिय-पहसिए " Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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