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- भगवती सूत्र-श. १५ अ. ११ महायल चरित्र
सेवक पुरुषों ने आज्ञा पालन का निवेदन किया। राजा ने व्यायामशाला में जाकर व्यायाम किया और स्नान किया। दस दिन के लिए प्रजा से शुल्क (मूल्य या कर विशेष) और कर लेना रोक दिया। क्रय, विक्रय, मान, उन्मान का निषेध किया,
और ऋणियों को ऋण-मुक्त किया तथा दण्ड और कुदण्ड का निषेध किया। प्रजा के घर में सुभटों के प्रवेश को बन्द कर दिया और धरणा देने का निषेध कर दिया। इसके अतिरिक्त उत्तम गणिकाओं और नाटिकाओं से युक्त तथा अनेक तालानुचरों से निरन्तर बजाई जाती हुई मृदंगों से युक्त तथा प्रमोद एवं क्रीडापूर्वक सभी लोगों के साथ दस दिन तक पुत्र महोत्सव मनाया जाता रहा । इन दस दिनों में बलराजा सैकड़ों, हजारों, लाखों रुपयों के खर्चवाले कार्य करता हुआ, दान देता हुआ, दिलवाता हुआ एवं इसी प्रकार सैकड़ों, हजारों लाखों रुपयों की भेंट स्वीकार करता हुआ विचरता रहा। फिर बालक के माता-पिता ने पहले दिन कुल मर्यादा के अनुसार किया की। तीसरे दिन बालक को चन्द्र और सूर्य - के दर्शन कराये। छठे दिन जागरणारूप उत्सव विशेष किया । ग्यारह दिन व्यतीत होने पर अशुचिकर्म की निवृत्ति की। बारहवें दिन विपुल अशन, पान, खादिम, स्वादिम तैयार कर (ग्यारहवें शतक के नौवें उद्देशक में कथित शिवराजा के समान) सभी क्षत्रिय ज्ञातिजनों को निमंत्रित कर भोजन कराया। फिर उन सब के समक्ष अपने बाप-दादा आदि से चली आती हुई कुल परम्परा के अनुसार कुल के योग्य, कुलोचित, कुलरूप सन्तान को वृद्धि करनेवाला, गुणयुक्त और गुण निष्पन्न नाम देते हुए कहा-'क्योंकि यह बालक, बलराजा का पुत्र और प्रभावती देवी का आत्मज है, इसलिए इसका नाम 'महाबल' रखा जाय । अतएव बालक के माता-पिता न उसका नाम महाबल रखा।' .
२९ तएणं से महव्वले दारए पंचधाईपरिग्गहिए, तंजहाखीरधाईए, एवं जहा दढपइण्णे, जाव णिवाय-णिव्वाघायंसि सुहंसुहेणं परिवड्ढइ । तएणं तस्स महब्बलस्स दारगस्स अम्मा-पियरो
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