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भगवती.सूत्र-श. ११ उ..१.१ महावल चरित्र
साइमं उवक्खडाविति, उवक्खडावेत्ता जहा मिवो जाव खत्तिए य आमंतेंति आ० तओ पच्छा व्हाया कय० तं चेव जाव सक्कारेंति सम्माणति, सक्का० तस्सेव मित्त-णाइ जाव राईण य खत्तियाण य पुरओ अज्जय-पज्जय पिउपजयागयं वहुपुरिसपरंपरप्परूढं कुलाणुरूवं कुलसरिसं कुलसंताणतंतुवद्धणकरं अयमेयारूवं गोण्णं गुणणिफणं णामधेनं करेंति-'जम्हा णं अम्हं इमे दारए वलस्स रण्णो पुत्ते पभावईए देवीए अत्तए, तं होउ णं अम्हं एयस्स दारगस्स णामधेन्ज महब्बले,' तएणं तस्स दारगस्स अम्मापियरो णामधेज करेंति 'महब्बले' ति ।
कठिन शब्दार्थ-चारगसोहणं-कारागार खाली करो (बन्दी छोड़ो), उस्सुक्कं-शुल्क रहित, उक्कर-कर रहित, उक्किळं-उत्कृष्ट, अदिज्ज-नहीं देने योग्य, अमिज्ज-नहीं नापने, योग्य, अभडप्पवेसं-सुभट के प्रवेग रहित, अदंडकोदंडिम-दंड तथा कुदंड रहित, अधरिमंऋण लेने को और लौटाने में होते हुए झगड़े को रोकना, गणियावरणाडइज्जकलियं-उच्च प्रकार की गणिकाओं और नटों से युक्त, अणेगतालचराणुचरियं-अनेक तालानुचरों से युक्त, अणुद्धयमुइंग-निरंतर मृदंग बजते हुए, पमुइयपक्कोलियं-प्रमोद एवं क्रीड़ा युक्त, ठिईवडियं-स्थिति पतित, जाए-व्यय किया, दाए-दान, भाए-भाग, असुइयजायकम्मकरणेअशुचिजात कर्म करने।
२८ भावार्थ-इसके बाद बलराजा ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और कहा-'हे देवानुप्रियो ! शीघ्र ही बन्दियों को मुक्त करो, मान (नाप) और उन्मान (तोल) की वृद्धि करो। हस्तिनापुर नगर के बाहर और भीतर छिड़काव करो, स्वच्छ करो, सम्माजित करो, शुद्धि करो, कराओ । तत्पश्चात् यूपसहस्र और चक्रसहस्र को पूजा महिमा और सत्कार के योग्य करो। यह सब कार्य करके मुझे निवेदन करो। इसके बाद बलराजा की आज्ञानुसार कार्य करके उन
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