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. भगवती सूत्र-श. ११ उ. ११ महाबल चरित्र
१९४३
पियट्टयाए पियं णिवेदेमो, पियं मे भवउ ।' तएणं से बले राया
अंगपडियारियाणं अंतियं एयमढें सोचा णिसम्म हट्ट-तुट्ट. जाव धाराहयणीव० जाव रोमकूवे तासिं अंगपडियारियाणं मउडवज्ज जहामालियं ओमोयं दलयइ, दलयित्ता सेयं रययामयं विमलसलिल. पुण्णं भिंगारं च गिण्हइ, गिण्हित्ता मत्थए धोवइ, मत्थए धोवित्ता विउलं जीवियारिहं पीइदाणं दलयइ, पीडदाणं दलयित्ता सकारेइ सम्माणेइ, सकारत्ता सम्माणेत्ता पउिविसज्जइ । . .
कठिन शब्दार्थ-अंगपडियारियाओ-अंगप्रतिचारिका (सेवा करने वाली दासियाँ) पसूर्य-प्रसव हुआ, मउडवज्ज-मुकुट छोड़कर, जहामालियं-पहने हुए अलंकार, ओमोयंउतार कर, भिगार-गार (कलश) ।
भावार्थ-२७-पुत्र जन्म होने पर प्रभावती देवी की सेवा करने वाली दासियां, पुत्र-जन्म जानकर बल राजा के पास आई और हाथ जोड़कर जय विजय शब्दों से बधाया। उन्होंने राजा से निवेदन किया-'हे देवानुप्रिय ! प्रभावती देवी ने यथा समय पुत्र जन्म दिया है। आप की प्रीति के लिये हन आपसे पुत्रजन्मरूप प्रिय समाचार निवेदन करती हैं। यह आपके लिये प्रिय होवें ।" दासियों से प्रिय सम्वाद सुनकर बल राजा हर्षित एवं सन्तुष्ट हुआ, यावत् मेघ की धारा से सिंचित कदम्ब-पुष्प के समान रोमाञ्चित हुआ । नरेश ने अपने मुकुट को छोड़कर धारण किये हुए शेष सभी अलंकार उन दासियों को पारितोषिक स्वरूप दे दिये । फिर श्वेत रजतमय और निर्मल पानी से भरा हुआ कलश लेकर दासियों का मस्तक धोया और जीविका के योग्य बहुत-सा प्रीतिदान देकर उन्हें सत्कृत और सम्मानित कर विजित किया।
२८-तएणं से बले राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सदावित्ता
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