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________________ १९४२ भगवती सूत्र - श. ११ उ. ११ महावल चरित्र के प्रभाव से गर्भवती की इच्छा ) । भावार्थ-२५- बलराजा से उपर्युक्त अर्थ सुनकर, अवधारण कर प्रभावती देवी हर्षित एवं सन्तुष्ट हुई, यावत् हाथ जोड़ कर इस प्रकार बोली- " हे देवानुप्रिय ! जैसा आप कहते हैं वैसा ही है ।" इस प्रकार कहकर स्वप्न के अर्थ को भली प्रकार ग्रहण किया और बलराजा की अनुमति से अनेक प्रकार के मणिरत्नों की कारीगरी से युक्त उस भद्रासन से उठी और शीघ्रता तथा चपलता रहित यावत् हंसगति से चलकर अपने भवन में आई । २६ - स्नान आदि कर के प्रभावती देवी अलंकृत एवं विभूषित हुई । वह गर्भ का पालन करने लगी । वह अत्यन्त शीतल, अत्यन्त उष्ण, अत्यन्ततिक्ख ( तीखा ), अत्यन्त कटु, अत्यन्त कषैला, अत्यन्त खट्टा और अत्यन्त मधुर पदार्थ नहीं खाती, परन्तु ऋतु योग्य सुखकारक भोजन करती। वह गर्भ के लिये हितकारी, पथ्यकारी, मित और पोषण करने वाले पदार्थ यथा-समय ग्रहण करने लगी तथा वैसे ही वस्त्र और माला, पुष्प, आभरण आदि धारण करने लगी । यथा समय उसे जो जो दोहद उत्पन्न हुए, वे सभी सम्मान के साथ पूर्ण किये गये । वह रोग, शोक, मोह, भय और परित्रास रहित होकर गर्भ का सुख - पूर्वक पोषण करने लगी । इस प्रकार नवसास और साढ़े सात दिन पूर्ण होने पर प्रभावती देवी ने सुकुमाल हाथ पैर वाले दोष रहित, प्रतिपूर्ण पञ्चेन्द्रिय युक्त शरीर वाले तथा लक्षण, व्यञ्जन और गुणों से युक्त यावत् चन्द्र समान सौम्य आकृति वाले, कान्त, प्रिय दर्शन और सुन्दर रूप वाले पुत्र को जन्म दिया । २७ - तरणं तीसे पभावईए देवीए अंगपडियारियाओ पभावहं देविं पसूयं जाणेत्ता जेणेव वले राया तेणेव उवागच्छंति तेणेव उवागच्छत्ता करयल० जाव वलं रायं जपणं विजएणं वद्धावेंति, जपणं विजएणं वद्धावेत्ता एवं वयासी - ' एवं खलु देवाणुप्पिया ! पभावई ० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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