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भगवती नूत्र -ग. ११ उ. ११ महावल चरित्र
प्पिया ! एवं खलु देवाणुप्पिया ! पभावई देवी णवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं जावं वीइक्कंताणं तुम्हं कुलकेउं जाव पयाहिइ । से वि य णं दारए उम्मुक्कवालभावे जाव रज्जवई राया भविस्सइ, अणगारे वा भावियप्पा । तं ओराले णं देवाणुप्पिया ! पभावईए देवीए सुविणे दिटे, जाव आरोग्ग-तुहि-दीहाउअकल्लाण जाव दिटे।
___ कठिन शब्दार्थ-कुलकेउं--कुल-केतु (कुल में ध्वजा के समान) ।
भावार्थ-बलराजा से प्रश्न सुनकर, अवधारण कर, वे स्वप्न-पाठक प्रसन्न हुए। उन्होंने उस स्वप्न के विषय में सामान्य विचार किया, विशेष विचार किया, स्वप्न के अर्थ का निश्चय किया, परस्पर एक दूसरे के साथ विचारविमर्श किया और स्वप्न का अर्थ स्वयं जानकर, दूसरे से ग्रहण कर तथा शंका समाधान करके अर्थ का निश्चय किया और बलराजा को सम्बोधित करते हुए इस प्रकार बोले-“हे देवानुप्रिय ! स्वप्न-शास्त्र में बयालीस सामान्य स्वप्न और तीस महा स्वप्न-इस प्रकार कुल बहत्तर प्रकार के स्वप्न कहे हैं। इनमें से तीर्थंकर तथा चक्रवर्ती की माताएँ, जब तीर्थंकर या चक्रवर्ती गर्भ में आते हैं, तब ये चौदह महास्वप्न देखती हैं। यथा-१ हाथी, २ बैल,.३ सिंह, ४ अभिषेक की हुई लक्ष्मी ५ पुष्पलाला, ६ चन्द्र, ७ सूर्य, ८ ध्वजा, ९ कुम्भ (कलश), १० पद्मसरोवर, ११ समुद्र, १२ विमान अथवा भवन, १३ रत्नराशि और १४ निर्धूम अग्नि । इन • चौदह महास्वप्नों में से वासुदेव की माता, जव वासुदेव गर्भ में आते हैं, तब सात स्वप्न देखती हैं, बलदेव की माता, जब बलदेव गर्भ में आते हैं, तब इन.चौदह महास्वप्नों में से चार महास्वप्न देखती हैं और माण्डलिक राजा की माता, इन चौदह महास्वप्नों में से कोई एक महा स्वप्न देखती है । हे देवानुप्रिय !प्रभावती ने एक महास्वप्न देखा है। यह स्वप्न उदार, कल्याणकारी, आरोग्य,
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