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________________ भगवती सूत्र - ११ उ. ११ महाबल चरित्रं भावार्थ - २१ इसके बाद बलराजा ने कौटुम्बिक (सेवक) पुरुषों को बुलाकर इस प्रकार कहा - 'हे देवानुप्रियो ! तुम शीघ्र ही बाहर की उपस्थानशाला में, विशेष रूप से गन्धोदक का छिड़काव कर के स्वच्छ करो और लींप कर शुद्ध करो । सुगन्धित और उत्तम पांच वर्ण के पुष्पों से अलंकृत करों । उत्तम कालागुरु और कुन्दरुक के धूप से यावत् सुगन्धित गुटिका के समान करो - कराओ, फिर सिंहासन रखो और मुझे निवेदन करो। कौटुम्बिक पुरुषों ने राजा की आज्ञानुसार कार्य करके निवेदन किया । Jain Education International १९३३ २२ - तणं से बले राया पच्चसकालसमयंसि सयणिजाओ अन्द्रेह, सय० पायपीटाओ पच्चोरुहड़, पाय० जेणेव अट्टणसाला तेणेव उवागच्छड, अट्टणसालं अणुपविसर, जहा उववाइए तहेव अट्टणमाला तहेव मज्जणघरे जाव ससिव्व पियदंसणे णरवई मज्जणघराओ पडिणिक्खमs, पडिणिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उबट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ तेणेव उवागच्छित्ता सीहासणवरंसि पुरत्याभिमु णिसीय णिसीता अप्पणो उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए अट्ठ भासणाई सेयवत्थपच्चुत्थुयाई सिद्धत्थगकय मंगलोवयाराई यावे, रयावेत्ता अप्पणो अदूरसामंते णाणामणिरयणमंडियं, अहियपेच्छणिज्जं, महग्घ-वरपट्टणुग्गयं, सण्हपट्टबहुभत्तिसयचित्तताणं, ईहामिय-उसभ० जाव भत्तिचितं, अभितरियं जवणियं अंावेद, अंछावेत्ता णाणामणि- रयणभत्तिचित्तं अत्थरय-मउयमसूरगोत्थयं, सेय वत्थपच्चुत्थुयं, अंगसुहफासुयं सुमउयं पभावईए देवीए भद्दासणं For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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