SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 377
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती सूत्र - श. ११ उ. ११ महाबल चरित्र होकर युवावस्था को प्राप्त करके शूरवीर, पराक्रमी, विस्तीर्ण और विपुल बल (सेना) तथा वाहनवाला, राज्य का स्वामी होगा। हे देवी! तुमने उदार (प्रधान) स्वप्न देखा है । हे देवी! तुमने आरोग्य, तुष्टि यावत् मंगलकारक स्वप्न देखा है । इस प्रकार बल राजा ने इष्ट यावत् मधुर वचनों से प्रभावती देवी को यही बात दो बार और तीन बार कही । बलराजा की पूर्वोक्त बात सुनकर और अवधारण कर प्रभावती देवी हर्षित एवं सन्तुष्ट हुई और हाथ जोड़ कर इस प्रकार बोली- 'हे देवानुप्रिय ! आपने जो कहा वह यथार्थ है, सत्य है, सन्देह रहित है । मुझे इच्छित और स्वीकृत है, पुनः पुनः इच्छित और स्वीकृत है ।' इस प्रकार स्वप्न के अर्थ को स्वीकार कर बलराजा की अनुमति से भद्रासन से उठी और शीघ्रता एवं चपलता रहित गति से अपने शयनागार में आकर शय्या पर बैठी । रानी विचार करने लगी- 'यह मेरा उत्तम, प्रधान और मंगलरूप स्वप्न, दूसरे पाप-स्वप्नों से विनष्ट न हो जाय, अतः वह देव- गुरु सम्बन्धी प्रशस्त और मंगल रूप धार्मिक कथाओं और विचारणाओं से स्वप्न जागरण करती हुई बैठी रही । 1 १९३२ २१ - तएणं से बले राया कोटुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी - खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! अज्ज सविसेसं बाहिरियं उवाणसालं गंधोदय- सित्त- सुइअ - संमज्जि ओवलितं सुगंधवरपंचवण्णपुष्फोवयारकलियं कालागरुपवर कुंदुरूक्क० जाव गंधवट्टिभूयं करेह य करावेह य, करिता करावित्ता सीहासणं रएह, सीहासणं रयाविता ममेयं जाव पञ्चष्पिणह । तएणं ते कोटुंबिय० जाव पडिणित्ता खिप्पामेव सविसेसं बाहिरियं उबट्टाणसालं जाव पच्चपिणंति । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy