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________________ भगवती सूत्र-ग. ११ उ. ११ महाबल चरित्र १९२७ वताढय) पर्वत के समान श्वेत वर्ण वाला था। वह विशाल, रमणीय और दर्शनीय था। उसके प्रकोष्ठ स्थिर और सुन्दर थे। वह अपने गोल, पुष्ट, सुश्लिष्ट विशिष्ट और तीक्ष्ण दाढ़ाओं से युक्त्र मुंह को फाड़े हुए था। उसके ओष्ठ संस्कारित उत्तम कमल के समान कोमल, प्रमाणोपेत, अत्यन्त सुशोभित था । उसका तालु और जीभ रक्त-कमल के पत्र के समान, अत्यंत कोमल थी। उसकी आँखें मूस में रहे हुए एवं अग्नि से तपाये हुए तथा आवर्त करते हुए उत्तम स्वर्ण के समान वर्ण वाली, गोल और बिजली के सनान निर्मल थी। उसकी जंघा विशाल और पुष्ट थी। वह सम्पूर्ण और विपुल स्कन्ध वाला था। उसकी केशरा कोमल विशद, सूक्ष्म एवं प्रशस्त लक्षण वाली थी। वह सिंह अपनी सुन्दर तथा उन्नत पूंछ को पृथ्वी पर फटकारता हुआ सौम्य, सौम्य आकार वाला, लीला करता हुआ, उबासी लेता हुआ और आकाश से नीचे उतर कर अपने मुख में प्रवेश । करता हुआ दिखाई दिया। यह स्वप्न देखकर प्रभावती रानी जाग्रत हुई। १७-तएणं सा पभावई देवी अयमेयारूवं ओरालं जाव-सस्सिरियं महासुविणं पासित्ता णं पडिबुद्धा समाणी हट्ट तुट्ठ जाव हियया धाराहयकलंबपुष्फगं पिव समूसियरोमकूवा तं सुविणं ओगिण्हइ, ओगिण्हित्ता सयणिजाओ अब्भुटेइ, सय० अतुरियमचवलमसंभताए अविलंबियाए रायहंससरिसीए गईए जेणेव बलस्स रण्णो सयणिज्जे तेणेव उवागच्छइ, तेणेव० बलं रायं ताहिं इट्टाहिं कंताहिं पियाहिं मणुण्णाहिं मणामाहिं ओरालाहिं कल्लाणाहिं सिवाहिं धण्णाहिं मंगल्लाहिं सस्सिरीयाहिं मिय-महुर-मंजुलाहिं गिराहिं संलवमाणी संलवमाणी पडिबोहेइ, पडि० बलेणं रण्णा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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