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भगवती सूत्र-श. ११ उ. ११ महाबल चरित्र
दानी) सहित, सुरम्य आजिनक (एक प्रकार का चमड़े का कोमल वस्त्र) रुई, बूर, नवनीत (मक्खन) अर्कतूल (आक की रुई) के समान कोमल स्पर्श वाली, सुगन्धित उत्तम पुष्प, चूर्ण और अन्य शयनोपचार से युक्त थी। ऐसी शय्या में सोती हुई प्रभावती रानी ने अर्द्ध निद्रित अवस्था में अर्द्ध रात्रि के समय इस प्रकार का उदार, कल्याण, शिव, धन्य, मंगलकारक और शोभायुक्त महास्वप्न देखा और जागृत हुई।
१६-हार-रयय-खीरसागर-ससंककिरण-दगरय-रययमहासेलपंडुरतरोरुरमणिज-पेच्छणिजं, थिर-लट्ठ-पउट्ठ-बट्ट-पीवर-सुसिलिट्ठ-विसिट्ठः तिखदाढाविडंबियमुहं, परिकम्मियजचकमलकोमल-माइअसोभंतलठ्ठः उठें, रतुप्पलपत्तमउअसुकुमालतालुजीहं, मूसागयपवरकणगतावियआवत्तायंत-वट्ट-तडिविमलसरिसणयणं, विसालपीवरोरु, पडिपुण्णविपुलखधं, मिउविसयसुहमलक्खण-पसत्थ-विच्छिण्णकेसरसडोवसोभियं, असिय-सुणिम्मिय-सुजाय-अप्फोडियलंगूलं, सोमं, सोमाकार, लीलायंत, जंभायंतं, णहयलाओ ओवयमाणं णिययवयणमइवयंतं, सीहं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धा ।
___ कठिन शब्दार्थ--ओवयमाणं-नीचे उतरते हुए, ससंककिरण-चन्द्रमा की किरण, दगरय-जल बिन्दु, रययमहासेल-रजत के बड़े पर्वत जैसा, पंडुरतरोरुरमणिज्ज-अत्यंत श्वेत एवं रमणीय, पेच्छणिज्ज-देखने योग्य, पउट्ठ-प्रकोष्ठ (हाथ की कोहनी से लगाकर पहुँचे तक का भाग) णहयलाओ-नभ-आकाश से, णिययवयणमइवयंत-अपने मुंह में प्रवेश करते, पडिबुद्धा-जाग्रत हुई।
भावार्थ-१६-प्रभावती रानी ने स्वप्न में एक सिंह देखा, जो मोतियों के हार, रजत (चाँदी), क्षीर समुद्र, चन्द्र-किरण पानी की बिन्दु और रजत-महाशैल
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