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भगवती सूत्र-स. ११ उ. ११ महावल चरित्र
मस्रणयगंभीरे-मध्य में नमी हुई एवं गम्भीर, गंगापुलिणवालयउद्दालसालिए-गंगा के किनारे की रेती के अवदाल (धंसती हुई) के समान, उवचिय-खोमियदुगुल्लपट्ट-पडिच्छायणे-भरे हुए रेशमी दुकूल पट से आच्छादित, सुविरइयरयत्ताणे -रजस्त्राण से ढकी हुई, रत्तंसुयसंवएरक्तांशुक की मच्छरदानी युक्त, आइणग-आजिनक (चर्म का कोमल वस्त्र), सयणोवयारकलिए-गयनोपचार युवन ।
भावार्थ-१४ प्रश्न-हे भगवन् ! इन पल्योपम और सागरोपम का क्षय या अपचय होता है ? .
१४ उत्तर-हाँ, सुदर्शन ! होता है ।
१५ प्रश्न-हे भगवन् ! ऐसा क्यों कहते हैं कि पल्योपम और सागरोपम का क्षय और अपचय होता है ?
__ १५ उत्तर-हे सुदर्शन ! (इस बात को एक उदाहरण द्वारा समझाया जाता है) उस काल उस समय हस्तिनापुर नामक एक नगर था। (वर्णन)। वहाँ सहस्राम्रवन नामक उद्यान था। (वर्णन) । उस हस्तिनापुर नगर में बल नामक राजा था (वर्णन) । उस बल राजा के प्रभावती नाम की रानी थी। उसके हाथ पैर सुकुमाल थे, इत्यादि वर्णन जानना चाहिये । किसी दिन उस प्रकार के भवन में जो भीतर से चित्रित, बाहर से सफेदी किया हुआ और घिसकर कोमल बनाया हुआ था। जिसका उपरिभाग विविध चित्र युक्त था और नीचे का भाग सुशोभित था। वह मणि और रत्नों के प्रकाश से अन्धकार रहित, बहसमान, सुविभक्त भागवाला, पांच वर्ण के सरस और सुगन्धित पुष्प-पुञ्जों के उपचार से युक्त, उत्तम कालागुरु, कुन्दरुक और तुरुष्क (शिलारस) के धूप से चारों ओर सुगन्धित, सुगन्धी पदार्थों से सुवासित एवं सुगन्धी द्रव्य की गुटिका के समान था। ऐसे वासगृह (भवन) में शय्या थी, जो तकिया सहित, सिरहाने
और पगोतिये के दोनों ओर तकिया युक्त, दोनों ओर से उन्नत, मध्य में कुछ नमी हुई (झुकी हुई) विशाल, गंगा के किनारे की रेती के अवदाल (पैर रखने से फिसलजाने) के समान कोमल, क्षोमिक-रेशमी दुकूलपट से आच्छादित, रजस्त्राण (उड़ती हुई धूल को रोकने वाले वस्त्र) से ढकी हुई, रक्तांशुक (मच्छर
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