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________________ भगवती सूत्र - य. ११ उ. ११ महाबल चरित्र वास होता है, इत्यादि छठे शतक के सातवें शालि उद्देशक में कहे अनुसार यावत् सागरोपम तक जानना चाहिये । १२ प्रश्न - हे भगवन् ! पत्योपम और सागरोपम का क्या प्रयोजन है ? १२ उत्तर - हे सुदर्शन ! पत्योपम और सागरोपम के द्वारा नैरयिक, तिर्यञ्चयोनिक, मनुष्य तथा देवों का आयुष्य मापा जाता है । १३ प्रश्न - हे भगवन् ! नैरयिकों की स्थिति कितने काल की कही है ? १३ उत्तर - हे सुदर्शन ! यहाँ प्रज्ञापना सूत्र का चौथा स्थिति पद सम्पूर्ण कहना चाहिये यावत् सर्वार्थसिद्ध देवों की अजघन्य अनुत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की स्थिति कही है । विवेचन - जिस जीव ने जितना आयुष्य बांधा है, उतना आयुष्य भोगना 'यथाय्निर्वृत्तिकाल' कहलाता है । शरीर से जीव कर पृथक् हो जाना अथवा जीव से शरीर का पृथक् हो जाना 'मरण काल' कहलाता है । समय, आवलिका आदि 'अद्वाकाल' कहलाता है । पत्योपम, सागरोपम से चार गति ' के जीवों की आयु मापी जाती है । यह उपमा काल है । १९२३ महाबल चरित्र १४ प्रश्न - अस्थि णं भंते ! एएसिं पलिओमसागरोवमाणं खएइ वा अवचएइ वा ? १४ उत्तर - हंता, अस्थि । १५ प्रश्न - से केणट्टेणं भंते ! एवं वुबह - 'अस्थि णं एएसि णं पलिओम सागरोवमाणं जाव अवचएइ वा' ? १५ उत्तर - एवं खलु सुदंसणा ! तेणं कालेणं तेणं समपर्ण Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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