________________
१९२२ भगवती सूत्र - श. ११ उ. ११ सुदर्शन सेठ के काल विषयक प्रश्नोत्तर
१२ प्रश्न - एएहि णं भंते ! पलिओवम-सागरोवमेहिं किं पओयणं ?
१२ उत्तर - सुदंसणा ! एएहिं पलिओवम-सागरोवमेहिं णेरहयतिरिक्खजोणिय मणुस्स देवाणं आउयाइं मविज्जति ।
१३ प्रश्न - रइयाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? १३ उत्तर - एवं ठिइपयं णिरवसेसं भाणियव्वं जाव अजहण्णमणुकोसे तेत्तीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता ।
कठिन शब्दार्थ - अहा उणिव्वत्तिकाले - यथायुनिवृत्ति काल, मविज्जंति- माप किया जाता है, अद्धादोहारच्छेएणं- जिस समय के दो विभाग करने पर, समुदयस मिइसमागमेणंसमुदाय - समूह के मिलने से ।
भावार्थ - ९ प्रश्न - हे भगवन् ! यथायुनिर्वृत्ति काल कितने प्रकार का कहा है ?
९ उत्तर - हे सुदर्शन ! जिस किसी नैरयिक, तिर्यञ्चयोनिक, मनुष्य या देव ने स्वयं जैसा आयुष्य बांधा है, उसी प्रकार उसका पालन करना - भोगना,
6.
'यथायुनिर्वृत्ति काल' कहलाता है ।
१० प्रश्न - हे भगवन् ! मरण काल किसे कहते हैं ?
१० उत्तर - हे सुदर्शन ! शरीर से जीव का अथवा जीव से शरीर का
वियोग होता है, उसे 'मरण काल' कहा जाता है ।
११ प्रश्न - हे भगवन् ! अद्धाकाल कितने प्रकार का कहा है ?
११ उत्तर - हे सुदर्शन ! अद्धाकाल अनेक प्रकार का कहा है । यथासमय रूप, आवलिका रूप यावत् उत्सर्पिणी रूप । हे सुदर्शन ! काल के सब से छोटे भाग को 'समय' कहते हैं, जिसके फिर दो विभाग न हो सकें । असंख्य समयों के समुदाय से एक आवलिका होती है। संख्यात आवलिका का एक उच्छ
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org