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________________ १९१० भगवती सूत्र-श. ११ उ. १० अलोक की विशालता णं संचिटेजा, अहे णं अट्ठ दिमाकुमारीओ महत्तरियाओ अट्ठ बलिपिंडे गहाय माणुसुत्तरस्स पव्वयस्स चउसु वि दिसासु चउसु वि विदिसासु बहियाभिमुहीओ ठिचा ते अट्ठ वलिपिंडे जमगसमगं बहियाभिमुहे पक्खिवेजा, पभू णं गोयमा ! तओ एगमेगे देवे ते अट्ट बलिपिंडे धरणितलमसंपते खिप्पामेव पडिसाहरित्तए, ते णं गोयमा ! देवा ताए उक्किटाए जाव देवगईए लोगते ठिचा असल्भावपट्टवणाए एगे देवे पुरच्छाभिमुहे पयाए, एगे देवे दाहिणपुरच्छाभिमुहे पयाए, एवं जाव उत्तरपुरच्चाभिमुहे, एगे देवे उड्ढाभिमुहे, एगे देवे अहोभिमुहे पयाए । तेणं कालेणं तेणं समरणं वाससयसहस्साउए दारए पयाए । तएणं तस्स दारगस्स अम्मापियरो पहीणा भवंति, णो चेव णं ते देवा अलोयतं संपाउणंति, तं चेव जाव तेसिं णं भंते ! देवाणं किं गए वहुए अगए बहुए ? गोयमा ! णो गए वहुए अगए बहुए, गयाउ से अगए अणंतगुणे, अगयाउ से गए अणंतभागे, अलोए णं गोयमा ! एमहालए पण्णत्ते । कठिन शब्दार्थ-समयखेते-समय क्षेत्र-मनुष्य लोक । भावार्थ-२० प्रश्न-हे भगवन् ! अलोक कितना बड़ा है ? २० उत्तर-हे गौतम ! इस मनुष्य क्षेत्र की लम्बाई और चौड़ाई पैंतालीस लाख (४५०००००) योजन है, इत्यादि स्कन्दक प्रकरण के अनुसार जानना चाहिये, यात्रन वह परिधि युक्त है । उस समय में दस महद्धिक देव इस मनुष्य लोक को चारों ओर घेर कर खड़े हों, उनके नीवे आठ दिशा कुमारियां आठ बलिपिण्डों को ग्रहण कर मानुषोतर पर्वत की चारों दिशाओं और चारों विदि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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