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‘भगवती सूत्र-दश. ११ उ. १० आकाश के एक प्रदेश पर जीव-प्रदेश
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शाओं में बाह्याभिमुख खड़ी रहें, पश्चात् वे उन आठों बलिपिण्डों को एक साथ ही मानुषोत्तर पर्वत को बाहर की दिशाओं में फेंके, तो उन खड़े हुए देवों में से प्रत्येक देव उन बलिपिण्डों को पृथ्वी पर गिरने के पूर्व ही ग्रहण करने में समर्थ हैं,-ऐसी शीघ्र गति वाले वे दसों देव, लोक के अन्त से, यावत् (यह असत् कल्पना है जो संभव नहीं है)पूर्वादि चार दिशाओं में और चारों विदिशाओं में तथा एक ऊर्ध्व-दिशा में और एक अधो-दिशा में जावे। उसी समय एक गाथापति के घर एक लाख वर्ष की आयुष्य वाला एक बालक उत्पन्न हुआ। क्रमशः उस बालक के माता-पिता दिवंगत हुए, उसका भी आयुष्य क्षीण हो गया, उसकी अस्थि और मज्जा नष्ट हो गई और उसकी सात पीढ़ियों के पश्चात् वह कुलवंश भी नष्ट हो गया और उसके नाम-गोत्र भी नष्ट हो गये, इतने समय तक चलते रहने पर भी वे देव अलोक के अन्त को प्राप्त नहीं कर सकते।
(प्रश्न) हे भगवन् ! उन देवों द्वारा गत-क्षेत्र अधिक है, या अगत-क्षेत्र. अधिक है ? . (उत्तर) हे गौतम ! गत-क्षेत्र थोड़ा है और अगत-क्षेत्र अधिक है । गत
क्षेत्र से अगत-क्षेत्र अनन्त गुण है। अगत-क्षेत्र से गत-क्षेत्र अनन्तवें भाग है। हे गौतम ! अलोक इतना बड़ा कहा गया है।
आकाश के एक प्रदेश पर जीव-प्रदेश
नर्तकी का दृष्टांत
२१ प्रश्न-लोगस्त णं भंते ! एगंमि आगासपएसे जे एगिदियपएसा जाव पंचिंदियपएसा अणिदियपएसा अण्णमण्णबद्धा, अण्ण. मण्णपुट्ठा, जाव अण्णमण्गसमभरघडत्ताए चिटुंति ? अस्थि णं भंते !
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