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________________ भगवती सूत्र-श.. ११ उ. १० लोक द्रव्यादि के भेद : १९०५ १७ प्रश्न-अलोयस्स णं भंते ! एमंमि आगासपएसे पुच्छा । १७ उत्तर-गोयमा ! णो जीवा, णो जीवदेसा, तं चेव जाव अणंतेहिं अगरुयलहुयगुणेहिं संजुत्ते सव्वागासस्म अणंतभागूणे । १८-दव्वओ णं अहेलोयखेत्तलोए अणंताई जीवदव्वाई, 'अणंताई अजीवदवाई. अणंता जीवाजीवदव्वा । एवं तिरिय लोयखेतलोए वि एवं उइटलोयखेत्तलोए वि । दव्वओ णं अलोए णेवत्थि जीवदव्वा, णेवत्थि अजीवदव्वा, णेवस्थि जीवाजीवदव्वा, एगे अजीवदव्वदेसे जाव सव्वागासअणंतभागृणे । कालओ पं अहेलोयखेतलोए ण कयाइ णासि, जाव णिच्चे, एवं जाव अलोए । भावओ णं अहेलोयखेतलोए अणंता वण्णपजवा, जहा खंदए, जाव अणंता अगरुयलहुयपजवा, एवं जाव लोए । भावओ णं अलोए णेवत्थि वण्णपजवा, जाव णेवस्थि अगस्यलहुयपज्जवा, एगे अजीवदव्वदेसे, जाव अणंतभागूणे । कठिन शब्दार्थ-णेवत्थि-नहीं। भावार्थ-१७ प्रश्न-हे भगवन् ! अलोक के एक आकाशप्रदेश में जीव हैं, इत्यादि प्रश्न । १७ उत्तर-हे गौतन ! वहाँ 'जीव नहीं, जीवों के देश नहीं,' इत्यादि पूर्ववत् जानना चाहिये, यावत् अलोक अनन्त अगुरुलयु गुणों से संयुक्त है और सर्वाकाश के अनन्तवें भाग न्यून है । १८-द्रव्य से अधोलोक क्षेत्रलोक में अनन्त जीव द्रव्य हैं, अनन्त अजीव द्रव्य है और अनन्त जीवाजीव द्रव्य हैं। इसी प्रकार तिर्यग्लोक क्षेत्रलोक में और Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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