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भगवंती सूत्र-श. ११ उ. १० लोक की विशालता
ऊर्ध्वलोक क्षेत्रलोक में भी जानना चाहिये । द्रव्य से अलोक में जीव द्रव्य नहीं, अजीव द्रव्य नहीं और जीवाजीव द्रव्य भी नहीं, किन्तु अजीव द्रव्य का एक देश है यावत् सर्वाकाश के अनन्तवें भाग न्यून है। काल से अधोलोक क्षेत्रलोक किसी समय नहीं था-ऐसा नहीं, यावत् वह नित्य है । इस प्रकार यावत् अलोक के विषय में भी कहना चाहिये । भाव से अधोलोक क्षेत्रलोक में 'अनन्त वर्ण पर्याय हैं,' इत्यादि दूसरे शतक के प्रथम उद्देशक में स्कन्दक वणित प्रकरण के अनुसार जानना चाहिये, यावत् अनन्त अगुरुलघु पर्याय हैं । इस प्रकार यावत् लोक तक जानना चाहिये । भाव से अलोक में वर्ण पर्याय नहीं, यावत् अगुरुलघु पर्याय नहीं है, परन्तु एक अजीव द्रव्य का देश अनन्त अगुरुलघुगुणों से संयुक्त है और वह सर्वाकाश के अनन्तवें भाग न्यून है ।
विवेचन-यहाँ पर अलोक में जो अगुरुलघु पर्यायों का निषेध किया गया है. वह अन्य दव्यों की पर्यायों की अपेक्षा समझना चाहिये । क्योंकि अलोक में अन्य द्रव्य है ही नहीं। आगमकारों की वर्णन शैली ही इस प्रकार की है कि पहले आधेय द्रव्यों का वर्णन करके वाद में आधार द्रव्य का वर्णन करते हैं। जैसा कि द्रव्य आदि के वर्णन में भी जीव अजीव आदि आधेय द्रव्यों का निषेध करके फिर एक अजीव द्रव्य देश के रूप में अलोक को बताया है। इसी प्रकार यहाँ पर भी आधेय द्रव्यों के अगुरुलघु पर्यन्त पर्यायों का निषेध करके अलोक को एक अजीव द्रव्य के देश रूप और अनन्त अगुरुलघु गणों से संयुक्त बताया है।
लोक की विशालता १९ प्रश्न-लोए णं भंते ! के महालए पण्णत्ते ?
१९ उत्तर-गोयमा ! अयण्णं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीव० जावपरिक्वेवणं । तेणं कालेणं तेणं समएणं छ देवा महिड्ढीया जावमहेसक्खा जंबुद्दीवे दीवे मंदरे पव्वए मंदरचूलियं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ता णं चिट्ठेजा, अहे णं चत्तारि दिसाकुमारीओ महत्तरि
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