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भगवती सूत्र - श. ११७. १० लोक के द्रव्यादि भेद
के देश हैं । इनमें जो जीव के प्रदेश हैं, वे नियम से एकेन्द्रिय जीवों के प्रदेश हैं, अथवा एकेन्द्रिय जीवों के प्रदेश और एक बेइन्द्रिय जीव के प्रदेश हैं, अथवा एकेन्द्रिय जीवों के प्रदेश और बेइन्द्रिय जीवों के प्रदेश हैं । इस प्रकार यावत् पञ्चेन्द्रिय तक प्रथम भंग के सिवाय दो दो भंग कहना चाहिये । अनिन्द्रिय में तीनों भंग कहना चाहिये। उनमें जो अजीव हैं, वे दो प्रकार के कहे हैं । यथारूपी अजीव और अरूपी अजीव । रूपी अजीवों का वर्णन पूर्ववत् जानना चाहिये । अरूपी अजीव पांच प्रकार के कहे गये हैं । यथा - १ धर्मास्तिकाय का देश, २ धर्मास्तिकाय का प्रदेश, ३ अधर्मास्तिकाय का देश ४ अधर्मास्तिकाय का प्रदेश और ५ अद्धा समय ।
१६ प्रश्न - तिरियलोयखेत्तलोयस्स णं भंते ! एगंमि आगासपरसे किं जीवा० ?
१६ उत्तर - एवं जहा अहोलोयखेत्तलोयस्स तहेव, एवं उड्ढलोयखेलोस्स वि, णवरं अद्धासमओ णत्थि, अरूवी चउव्विहा । लोयस्स जहा अहोलोयखेत्तलोयस्स एगंमि आगासपएसे ।
भावार्थ - १६ प्रश्न - हे भगवन् ! तिर्यग्लोक क्षेत्रलोक के एक आकाशप्रदेश में जीव हैं, इत्यादि प्रश्न ।
१६ उत्तर - हे गौतम ! जिस प्रकार अधोलोक क्षेत्रलोक के विषय में कहा हैं, उसी प्रकार यहाँ भी जानना चाहिये और इसी प्रकार ऊर्ध्वलोक क्षेत्रलोक के एक आकाश प्रदेश के विषय में भी जानना चाहिये, किन्तु वहाँ अद्धा समय नहीं है, इसलिये वहाँ चार प्रकार के अरूपी अजीव हैं । लोक के एक आकाशप्रदेश का कथन अधोलोक क्षेत्रलोक के एक आकाश प्रदेश के कथन के समान जानना चाहिये ।
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