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भगवती सूत्र-अ. ११ उ. १० लोक के द्रव्यादि भेद
-१९०३
णियमा १ एगिदिय देसा, २ अहवा एगिदियदेसा य वेइंदियस्स देसे, ३ अहवा एगिदियदेसा य वेइंदियाण य देसा । एवं मझिल्ल. विरहिओ जाव-अणिदिएसु, जाव-अहवा एगिदियदेसा य अणिंदियदेसा य। जे जीवपएसा ते णियमा १ एगिंदियपएसा, २ अहवा एगिदियपएसा य वेइंदियस्स पएसा, ३ अहवा एगिदियपएसा य बेइंदियाण य पएसा, एवं आइल्लविरहिओ जाव पंचिंदिएसु, आणि. दिएमु तियभंगो । जे अजीवा ते दुविहा पण्णत्ता, तंजहा-रूवी अजीवा य अरूवी अजीवा य । रूवी तहेव, जे अरूवी अजीवा ते पंचविहा पण्णता, तंजहा-१ णोधम्मत्थिकाए धम्मस्थिकायस्स देसे, २ धम्मत्थिकायस्स पएसे, एवं ४ अहम्मत्थिकायस्स वि, ५ अद्धासमए।
भावार्थ-१५ प्रश्न-हे भगवन् ! अधोलोक क्षेत्रलोक के एक आकाशप्रदेश में जीव हैं, जीवों के देश हैं, जीवों के प्रदेश हैं, अजीव हैं, अजीवों के देश हैं, अजीवों के प्रदेश हैं ?
१५ उत्तर-हे गौतम ! जीव नहीं, किंतु जीवों के देश हैं, जीवों के प्रदेश हैं, अजीव हैं, अजीवों के देश हैं और अजीवों के प्रदेश हैं । इनमें जो जीवों के देश हैं, वे नियम से १ एकेन्द्रिय जीवों के देश हैं । अथवा २ एकेन्द्रिय जीवों के देश और बेइन्द्रिय जीव का एक देश है। ३ अथवा एकेन्द्रिय जीवों के देश और बेइंद्रिय जीवों के देश हैं। इस प्रकार मध्यम भंग रहित (एकेन्द्रिय जीवों के देश और बेइंद्रिय जीव के देश, इस मध्यम भंग से रहित)शेष भंग यावत् अनिन्द्रिय तक जानना चाहिये यावत् एकेन्द्रिय जीवों के देश और अनिन्द्रिय जीवों
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