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१८९६ -
भगवती सूत्र-श ११ उ १० लोक के अध्यादि भेद
मुक्त हुए।
२० प्रश्न-श्रमण भगवान महावीर स्वामी को वन्दना नमस्कार कर, गौतमस्वामी ने इस प्रकार पूछा-'हे भगवन् ! सिद्ध होने वाले जीव किस संहनन में सिद्ध होते हैं ?'
२० उत्तर-हे गौतम ! वज्रऋषभनाराच संहनन में सिद्ध होते हैं, इत्यादि औपपातिक सूत्र के अनुसार 'संहनन, संस्थान, उच्चत्व, आयुष्य, परिवसन (निवास), इस प्रकार सम्पूर्ण सिद्धिगण्डिका तक यावत् सिद्ध जीव अव्याबाध शाश्वत सुखों का अनुभव करते हैं-कहना चाहिए।
हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । ऐसा कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं।
॥ ग्यारहवें शतक का नौवां उद्देशक सम्पूर्ण ॥
शतक ११ उद्देशक १०
लोक के द्रव्यादि भेद १ प्रश्न-रायगिहे जाव एवं वयासी-कइविहे गं भंते ! लोए पण्णत्ते?
१ उत्तर-गोयमा ! चउविहे लोए पण्णत्ते, तंजहा-दव्वलोए. खेचलोए काललोए भावलोए।
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