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भगवती सूत्र-श. १. उ. ९ राजपि शिव का वृत्तांत
१८९१
भगवं महावीरे एवमाइक्खइ, जाव परूवेइ-एवं खलु एयस्स सिवस्स रायरिसिस्स छटुंछटेणं तं चेव जाव-भंडणिक्वेवं करेइ, भंडणिक्खेवं करेत्ता हत्थिणापुरे णयरे सिंघाडग० जाव-समुदा य । तएणं तस्स सिवस्स रायरिसिस्म अंतियं एयमढे सोचा णिसम्म जाव-समुद्दा य तण्णं मिच्छा, समणे भगवं महावीरे एवमाइक्खइ-एवं खलु जंबुद्दीवाईया दीवा लवणाईया समुद्दा तं चेव जाव असंखेजा दीवसमुद्दा पण्णत्ता समणाउसो !
कठिन शब्दार्थ-अण्णमण्णघडत्ताए -अन्योन्य संबद्ध।
भावार्थ-११ प्रश्न-हे भगवन् ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप में वर्ण सहित और वर्ण रहित, गन्ध सहित और गन्ध रहित, रस सहित और रस रहित, स्पर्श सहित और स्पर्श रहित द्रव्य, अन्योन्य बद्ध, अन्योन्य स्पृष्ट यावत् अन्योन्य सम्बद्ध हैं ?
.११ उत्तर-हाँ, गौतम ! हैं। .. १२ प्रश्न-हे भगवन् ! लवण समुद्र में वर्ण सहिता और वर्ण रहित गन्ध सहित और गन्ध रहित, रस सहित और रस रहित, स्पर्श सहित और स्पर्श रहित द्रव्य अन्योन्य बद्ध, अन्योन्य स्पृष्ट यावत् अन्योन्य सम्बद्ध है ?
१२ उत्तर-हाँ, गौतम ! हैं।
१३ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या धातकोखण्ड में यावत् स्वयम्भूरमण समुद्र में वर्णादि सहित और वर्णादि रहित द्रव्य यावत् अन्योन्य सम्बद्ध हैं ?
१३ उत्तर-हां, गौतम ! हैं।
१४ इसके पश्चात् वह महती परिषद् श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से उपर्युक्त अर्थ सुनकर और हृदय में धारण कर हर्षित एवं सन्तुष्ट हुई और भगवान् को वन्दना नमस्कार कर चली गई।
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