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________________ भगवती मूत्र-ग. ११ उ. ९ गजणि शिव का वनांन १८८५ तएणं से सिवे रायरिसी चउत्थछटक्वमण० एवं तं चेव, णवरं उत्तरदिसं पोक्खेड, उत्तराए दिसाए वेममणे महाराया पत्थाणे पत्थियं अभिरक्वउ सिवं रायरिसिं, सेमं तं चेव जाव-तओ पच्छा अप्पणा आहारमाहारइ । भावार्थ-६-इसके बाद शिव राजर्षि ने दूसरी बार बेले की तपस्या की। पारणे के दिन वे आतापना भूमि से नीचे उतरे, वल्कल के वस्त्र पहने, यावत् प्रथम पारणे का सारा वर्णन जानना चाहिए, परंतु इतनी विशेषता है कि दूसरे पारणे के दिन दक्षिण दिशा की पूजा की और इस प्रकार कहा-“हे दक्षिण दिशा के लोकपाल यम महाराज ! परलोक साधना में प्रवृत्त मुझ शिव राजर्षि की रक्षा करो," इत्यादि, सब पूर्ववत् जानना चाहिए। इसके बाद यावत् उसने आहार किया। इसी प्रकार शिवराजर्षि ने तीसरी बार बेले की तपस्या की। उसके पारणे के दिन पूर्वोक्त सारी विधि की। इसमें इतनी विशेषता है कि पश्चिम दिशा का प्रोक्षण किया और कहा-“हे पश्चिम दिशा के लोकपाल वरुण महाराज ! परलोक साधना में प्रवृत्त मुझ शिव राजर्षि की रक्षा करें," इत्यादि यावत् आहार किया। चौथी बार बेले की तपस्या के पारणे के दिन उत्तर दिशा का प्रोक्षण किया और कहा-'हे उत्तर दिशा के लोकपाल वैश्रमण महाराज ! धर्म साधना में प्रवृत्त मुझ शिवराजर्षि की आप रक्षा करें,' इत्यादि, यावत् आहार किया। . ७-तएणं तस्स सिवस्स रायरिसिस्म छटुंछटेणं अणिक्खित्तेणं दिसाचक्यालेणं जाव-आयावेमाणस्स पगइभदयाए जाव-विणीययाए अण्णया कयाइ तयावरणिजाणं कम्माणं खओवसमेणं ईहापोह-मग्गण-गवेसणं करेमाणस्स विभंगे णामं अण्णाणे समुप्पण्णे । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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