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________________ १८८४ भगवती सूत्र-श. ११ उ. ९ राजर्षि शिव का वृत्तांत इस प्रकार कह कर वे शिव राजर्षि पूर्व दिशा की ओर गये । उन्होंने कन्द मूल आदि ग्रहण कर अपनी छबड़ी भरी। दर्भ, कुश, समिध और वृक्ष की शाखाओं को झुका कर पते ग्रहण किये और अपनी झोंपड़ी में आए। फिर कावड़ नीचे रख कर वेदिका का प्रमार्जन किया और लीप कर उसे शुद्ध किया। फिर डाभ और कलश हाथ में लेकर गंगा नदी पर आए, उसमें डुबकी लगाई । जल-क्रीड़ा स्नान, आचमन आदि करके गंगा नदी से बाहर निकले और अपनी झोंपड़ी में आकर डाभ, कुश और वालुका से वेदिका बनाई । मथन-काष्ठ से अरणी की लकडी को घिस कर अग्नि सुलगाई और उसमें काष्ठ डाल कर प्रज्वलित की। फिर अग्नि की दाहिनी ओर इन सात वस्तुओं को रखा, यथा-सकथा (उपकरण विशेष) वल्कल, दीप, शय्या के उपकरण, कमण्डल, दण्ड और अपना शरीर । मध, घी और चावल द्वारा अग्नि में होम करके बलि द्वारा वैश्व देव की पूजा की, फिर अतिथि की पूजा करके शिव राजर्षि ने आहार किया। ६-तएणं से सिवे रायरिसी दोच्चं छटुक्खमणं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ । तएणं से सिवे रायरिसी दोच्चे छटुक्खमणपारणगंसि आयांवणभूमीओ पच्चोरुहइ, आयावण० एवं जहा पढमपारणगं, णवरं दाहिणगं दिसं पोरखेड, दाहिण० दाहिणाए दिसाए जमे महाराया पत्थाणे पत्थियं सेसं तं चेव आहारमाहारेइ । तएणं से सिवे रायरिसी तच्चं टुक्खमणं उपसंपज्जित्ता णं विहरइ । तएणं से सिवे रायरिसी सेसं तं चेव णवरं पच्चंत्थिमाए दिसाए वरुणे महाराया पत्थाणे पत्थियं सेसं तं चेव जाव आहारमाहारेइ । तएणं से सिवे रायरिसी चउत्थं छट्टक्खमणं उपसंपज्जित्ताणं विहरइ । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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