________________
भगवती सूत्र - श. ११ उ. ९ राजर्षि शिव का वृत्तांत
जला • आयंते चोक्खे परमसुइभूए देवय-पिडकयकज्जे दव्भ-कलसाहत्थगए गंगाओ महाणईओ पच्चुत्तरड़, गंगाओ० जेणेव सए उडए तेणेव उवागच्छह, तेणेव० दव्भेहि य कुसेहि य वालुयाएहि य देई रहए, वे रएत्ता सरएणं अरणिं महेड, सर० अभिंग पाडेड, अरिंग पाडेत्ता, अरिंग संधुक्के, अरिंग० ममिहाकाई पक्खिवर, समिहा० अरिंग उजाले, अरिंग० " अग्गिस्स दाहिणे पासे, सत्तंगाई समा दहे । तं जहा -सहं वक्कलं ठाणं, सिज्जा भंडं कमंडलुं । isar तहअप्पा अहे ताई समादहं ।” महुणा य घएण य तंदुलेहि य अरिंग हुणइ, अगिंग हुणित्ता चरुं साहेइ, चरुं साहेत्ता बलिं वस्सदेव करेs, वलिं० अतिहिपूयं करेइ, अतिहि० तओ पच्छा अपणा आहारमाहारेs |
कठिन शब्दार्थ - वागलवत्थणियत्थे - वल्कल वस्त्र पहिने, उडए - उटज - झोंपड़ी, किठिणसंकाइयगं-वांस का पात्र और कावड़, पत्थाणे - प्रवृत्त हुए, अणुजाणओ - अनुजा देवें, प्रसरइजाते हैं, उबवण संमज्जइ - लीपकर शुद्ध करते हैं, आयंते चोक्खे-आचमन करके पवित्र हुए. पिइककज्जे- पितृकार्य किया, पच्चुत्तरइ निकले, सरएणं अणि महेइ-सर- काष्ठ से अरणि घिसते हैं, सत्तंगाई समादहे - सात वस्तुएँ रवीं ।
१८८३
भावार्थ - ५ - इसके बाद प्रथम बेले की तपस्या के पारणे के दिन वे शिव राज आतापना भूमि से नीचे उतरे, बल्कल के वस्त्र पहिने, फिर अपनी झोंपड़ी में आये और कीढीग (बाँस का पात्र - छबड़ी) और कावड़ को लेकर पूर्व दिशा को प्रोक्षित (पूजित ) किया और बोले - 'हे पूर्व दिशा के सोम महाराजा ! धर्म साधन प्रवृत्त मुझ राजष शिव का आप रक्षण करें और पूर्व दिशा में रहे हुए कन्द भूल, छाल, पत्र, पुष्प, फल, बीज और हरी वनस्पति लेने की आज्ञा दीजिए ।'
में
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org