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________________ १८८० भगवती सूत्र - श. ११. ९ राजपि शिव का वृत्तांत । सन्धि- पालक आदि के परिवार से युक्त होकर शिवभद्र कुमार को उत्तम सिंहासन पर पूर्व दिशा की ओर मुँह करके बिठाया । फिर एक सौ आठ सोने के कलशों द्वारा यावत् एक सौ आठ मिट्टी के कलशों द्वारा सर्व ऋद्धि से यावत् वादिन्त्रादिक के शब्दों द्वारा राज्याभिषेक से अभिषिक्त किया। तत्पश्चात् अत्यन्त सुकु'माल और सुगन्धित गन्ध-वस्त्र द्वारा उसके शरीर को पोंछा । गोशीर्ष चन्दन का लेप किया, यावत् जमाली वर्णन के अनुसार कल्पवृक्ष के समान उसको अलंकृत एवं विभूषित किया | इसके बाद हाथ जोड़ कर शिवभद्र कुमार को जय विजय शब्दों से बधाया और औपपातिक सूत्र में वर्णित कोणिक राजा के प्रकरणानुसार इष्ट, कान्त एवं प्रिय शब्दों द्वारा आशीर्वाद दिया, यावत् कहा कि तुम दीर्घायु हो और इष्टजनों से युक्त होकर हस्तिनापुर नगर और दूसरे बहुत-से ग्रामादि का तथा परिवार, राज्य और राष्ट्र आदि का स्वामीपन भोगते हुए विचरो, इत्यादि कह कर जय जय शब्द उच्चारण किये । शिवभद्रकुमार राजा बना । वह महाहिमवान् पर्वत की तरह राजाओं में मुख्य होकर विचरने लगा । यहाँ शिवभद्र राजा का वर्णन कहना चाहिए । ४- तणं से सिवे राया अण्णया कयाई सोभणंसि तिहि करणदिवस - मुहुत्त - णक्खत्तंसि विलं असण- पाणखाइम साइमं वक्खडाas, उवखडावेत्ता मित्त-गाइ-णियग० जाव-परिजणं रायाणो यखत्तिया आमंते, आमंतेत्ता तओ पच्छा पहाए जाव - सरीरे भोयणवेला भोयणमंडवंसि सुहासणवरगए तेणं मित्त-णाइ-णियगसयण० जाव - परिजणेणं राएहि य खत्तिएहि य सधि विउलं असण- पाणखाइम - साइमं एवं जहा तामली जाव - सक्कारेइ, संमाणे, सक्कारिता संमाणित्ता तं मित्त-णाड़० जाव - परिजणं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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