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१८७६
भगवती सूत्र-- श. ११ उ. ९ राजपि शिव का वृत्तांत
संमजगा णिमजगा संपक्खाला उद्धकंड्रयगा अहोकंड्रयगा दाहिणकूलगा उत्तरकूलगा संखधमगा कूलधमगा मियलुद्धया हस्थितावसा जलाभिसेयकिढिणगाया अंबुवासिणो वाउवासिणो वक्कलवासिणो जलवासिणो चेलवासिणो अंबुभक्खिणो वाउभक्विणो सेवाल. भक्खिणो मूलाहारा कंदाहारा पत्ताहारा तयाहारा पुप्पाहारा फला. हारा बीयाहारा परिसडियकंदमूलपंडुपत्तपुप्फफलाहारा उदंडा रुखमूलिया मंडलिया वणवासिणो बिलवासिणो दिसापोक्खिया आया. वणाहिं पंचग्गितावेहिं इंगालसोल्लियपिव कंडुसोल्लियंपिव कट्ठसोल्लियंपिव अप्पाणं जाव करेमाणा विहरंति (जहा उववाइए जावकट्टसोल्लियं पिव अप्पाणं करेमाणा विहरंति)तत्थ णं जे ते दिसा. पोक्खी तावसा तेसिं अंतियं मुंडे भवित्ता दिसापोक्खियतावसत्ताए पवइत्तए । पव्वइए वि य णं समाणे अयमेयारूवं अभिग्गहं अभि. गिहिस्सामि-कप्पड़ मे जावजीवाए छठं-छटेणं अणिक्खित्तेणं दिसाचकवालेणं तवोकम्मेणं उड्ढं वाहाओ पगिझिय पगिझिय जाव विहरित्तए' त्ति कटु एवं संपेहेइ ।
कठिन शब्दार्थ-रज्जधुरं-राज्य-धुरा (राज्य का भार), बड्डामि-मेरे बढ़ रहे हैं, उटवेहमाणे-भोगता हुआ, कडुच्छ्यं-कुड़छी, वाणपत्या-वानप्रस्थ, होतिया-अग्नि होत्री, पोतियापौत्रिक (वस्त्रधारी), कोत्तिया-कौत्रिक (भूगायी), जण्णई-याज्ञिक, सट्टई-श्रद्धालु, थालईस्वप्परधारी, हुंबउट्ठा-कुण्डिधारी, दंतुक्खलिया-फल भोगी, उम्मज्जगा-एक वार पानी में डुबकी लगा कर स्नान करने वाले, संमजगा-बारबार डुबकी लगा कर स्नान करने वाले,
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