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________________ भगवती मूत्र-ा. ११ उ. ( गजपि गिय का वनांत कहना । उस शिव राजा के 'धारिणी' नाम की पटरानी थी। उसके हाथ, पैर अति सुकुमाल थे, इत्यादि स्त्री का वर्णन कहता। उस शिव राजा का पुत्र धारिणी रानी का अंगजात शिवभद्र नाम का कुमार था । उसके हाथ पैर अतिसुकुमाल थे । कुमार का वर्णन राजप्रश्नीय सूत्र में कथित सूर्यकान्त राजकुमार के समान कहना चाहिये । यावत् वह कुमार राज्य, राष्ट्र और सैन्यादिक का अवलोकन करता हुआ विचरता था। २-तएणं तम्म मिवस्म रण्णो अण्णया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि रजधुरं चिंतेमाणस्त अयमेयारूवे अझथिए जाव समुप्पजित्था-'अस्थि ता मे पुरा पोराणाणं० जहा तामलि. स्म, जाव-पुत्तेहिं वड्ढामि पसूहि वड्ढामि रज्जेणं वड्ढामि, एवं रटेणं बलेणं वाहणेणं कोसेणं कोट्ठागारेणं पुरेणं अंतेउरेणं वइटामि; विपुलधण-कणग-रयण० जाव संतसारसावएजेणं अईव अईव अभिवड्ढामि, तं किं णं अहं पुरा पोराणाणं० जाव एगंतसोक्खयं उब्वेहमाणे विहरामि ? तं जाव ताव अहं हिरण्णेणं वड्ढामि, तं चेव जाव अभिवइढामि, जाव मे सामंतरायाणो वि वसे वटुंति, ' तावता मे सेयं कल्लं पाउप्पभायाए जाव जलंते सुवहुं लोही-लोहकडाह कडुन्छुयं तंवियं तावसभंडगं घडावेत्ता सिवभई कुमार रज्जे ठवित्ता तं सुबहुं लोही-लोहकडाह-कडुच्छुयं तंबियं तावसभंडगं गहाय जे इमे गंगाकूले वाणपत्था तावसा भवंति, तं जहा-होत्तिया पोत्तिया कोत्तिया जण्णई सइई थालई हुंबउट्ठा दंतुक्खलिया उम्मजगा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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