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शतक ११ उद्देशक
राजर्षि शिव का वृत्तांत १ तेणं कालेणं तेणं समएणं हथिणापुरे णामं णयरे होत्था, वणओ । तस्स णं हथिणापुरस्स णयरस्त बहिया उत्तरपुरथिमे दिसिभागे एत्थ णं सहसंबवणे णाम उजाणे होत्था । सव्वोउयपुप्फफलसमिधे रम्मे गंदणवणसण्णिभप्पगासे सुहसीतलच्छाए मणोरमे साउप्फले अकंटए पासाईए, जाव-पडिरूवे । तत्थ णं हत्थिणापुरे णयरे सिवे णामं राया होत्था । महयाहिमवंत० वण्णओ। तस्स णं सिवस्स रण्णो धारिणी णामं देवी होत्था । सुकुमाल० वण्णओ । तस्स णं सिवस्स रण्णो पुत्ते धारिणीए. अत्तए सिवभद्दे णामं कुमारे होत्था । सुकुमाल० जहा सूरियकते, जाव-पच्चुवेक्खमाणे पच्चुवेक्खमाणे विहरइ।
कठिन शब्दार्थ-सव्वोउयपुप्फ-सभी ऋतुओं के पुष्प, रम्मे-रम्य, सण्णिभप्पगासे--समान, शोभित, साउप्फले--स्वादिष्ट फल वाला। .
भावार्थ--१--उस काल उस समय में हस्तिनापुर नामक था, वर्णन । उस हस्तिनापुर नगर के बाहर उत्तरपूर्व दिशा (ईशानकोण) में सहस्रान नामक उद्यान था । वह उद्यान सभी ऋतुओं के पुष्प और फलों से समृद्ध था। वह नन्दन वन के समान सुरम्य था। उसकी छाया सुख कारक और शीतल थी। वह मनोहर, स्वादिष्ट फल युक्त, कण्टक रहित और प्रसन्नता उत्पन्न करने वाला यावत् प्रतिरूप (सुन्दर) था। उस हस्तिनापुर नगर में 'शिव' नाम का राजा था। वह हिमवान् पर्वत के समान श्रेष्ठ राजा था, इत्यादि राजा का सब वर्णन
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