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________________ भगवती सूत्र - दा ११ उ. ८ नलिन के जीव एक जीव वाला होता है या अनेक जीव वाला ? १ उत्तर - हे गौतम! उत्पल उद्देशक के अनुसार सभी वर्णन करना चाहिये, यावत् 'सभी जीव अनन्त बार उत्पन्न हो चुके हैं - - तक कहना चाहिये । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है-ऐसा कहकर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं । विवेचन - पहले उद्देशक से लेकर आठवें उद्देशक तक उत्पलादि आठ वनस्पतिकायिक जीवों का वर्णन किया गया है। उनके पारस्परिक अन्तर को बतलाने वाली ये तीन गाथाएँ हैं । यथा सालम्मि धणुपुहत्तं होइ, पलासे य गाउ य पुहतं । जोयणसहस्समहियं, अवसेसाणं तु छण्हं पि ॥ १ ॥ कुंभिए नालियाए, वासपुहत्तं ठिई उ बोद्धव्वा । दस-वास सहस्साइं अवसेसाणं तु छण्हं पि ॥ २॥ कुंभिए नालियाए होंति, पलासे य तिष्णि लेसाओ । चत्तारि उ लेसाओ, अवसेसाणं तु पंचन्हं ||३|| १८७३ अर्थ - शालूक की उत्कृष्ट अवगाहना धनुषपृथक्त्व और पलास की उत्कृष्ट अवगाहमा गाऊ पृथक्व होती हैं । शेष उत्पल, कुम्भिक, नालिक, पद्म, कर्णिका और नलिन इन छह की उत्कृष्ट अवगाहना एक हजार योजन से कुछ अधिक होती है ॥ १ ॥ Jain Education International कुम्भिक और नालिक की उत्कृष्ट स्थिति वर्ष - पृथक्त्व होती है और शेष छह की उत्कृष्ट स्थिति दस हजार वर्ष की होती है || २ || कुम्भिक, नालिक और पलास में पहले की तीन लेश्याएँ होती हैं, शेष पांच में पहले की चार लेश्याएँ होती हैं ।। ३ ।। यद्यपि गाथा में तो शालूक और पलास योजन की अवगाहना बताई है किन्तु मूल पाठ उद्देशक और कुंभिक उद्देशक की भलामण होने ही स्पष्ट होती है । इस प्रकार चार वनस्पतियों (उत्पल, पद्म, कणिका और नलिन) की ही साधिक हजार योजन की अवगाहना होती है । के सिवाय छहों वनस्पतियों की हजार में कुंभिक और नालिक उद्देशक में पलास उनकी अवगाहना भी गव्यूति पृथक्त्व ॥ ग्यारहवें शतक का अष्टम उद्देशक सम्पूर्ण ॥ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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