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भगवती सूत्र-श. ११ उ. २ शालूक के जीव
४१ उत्तर-हाँ गौतम ! सभी प्राण, भूत, जीव, और सत्त्व अनेक बार अथवा अनन्त बार पूर्वोक्त रूप से उत्पन्न हुए।
हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । ऐसा कहकर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं ।
_ विवेचन-आहार द्वार-पृथ्वीकायिकादि जीव सूक्ष्म होने से निष्कुटों (लोक के अन्तिम कोण) में उत्पन्न हो सकते हैं, इसलिये वे कदाचित् तीन दिशा से, कदाचित् चार दिशा से और कदाचित् पाँच दिशा से आहार लेते हैं तथा निर्व्याघात आश्रयी छहों दिशा का आहार लेते हैं, किंतु उत्पल के जीव बादर होने से वे निष्कुटों में उत्पन्न नहीं होते । अतः वे नियम से छह दिशा का आहार लेते हैं।
उत्पल के जीव, वहाँ से मरकर तुरन्त तिर्यञ्च गति में या मनुप्य गति में जन्म लेते हैं, किन्तु देवगति और नरक गति में उत्पन्न नहीं होते ।
समस्त जीव उत्पल के मूल, नाल, कन्दादिपने अनेक बार अथवा अनन्त वार उत्पन्न . हो चुके हैं।
इस प्रकार उत्पल के सम्बन्ध में यहाँ तेतीस द्वार कहे गये हैं ।
॥ ग्यारहवां शतक का प्रथम उद्देशक सम्पूर्ण ॥
शतक ११ उद्देशक २
शालूक के जीव १ प्रश्न-सालुए णं भंते ! एगपत्तए कि एगजीवे अणेगजीवे ?
१ उत्तर-गोयमा ! एगजीवे । एवं उप्पलुद्देसगवत्तव्वया अपरिसेसा भाणियव्वा जाव 'अणंतखुत्तो'; णवरं सरीरोगाहणा
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