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________________ १८५६ . भगवती सूत्र-स. १५ उ. १. उत्पल के जीव ... निश्वासक है, इत्यादि (११-१४). अथवा एक उच्छ्वासक और एक अनुच्छ्वासकनिश्वासक है इत्यादि (१५-१८) अथवा एक निःश्वासक और एक अनुच्छ्वासकनिश्वासक है, इत्यादि ।(१९-२६)अथवा एक उच्छ्वासक, एक निश्वासक और एक अनुच्छ्वासकनिश्वासक है, इत्यादि आठ भंग होते हैं। ये सब मिलकर छब्बीस भंग हो जाते हैं। २० प्रश्न-हे भगवन् ! वे उत्पल के जीव आहारक है या अनाहारक ? २० उत्तर-हे गौतम ! वे सब अनाहारक नहीं, किन्तु कोई एक जीव आहारक है अथवा कोई एक जीव अनाहारक है, इत्यादि आठ भंग कहने चाहिये। . विवेचन-पाँच ज्ञान और तीन अज्ञान को 'साकारोपयोग' कहते हैं और चार दर्शन को 'अनाकारोपयोग' कहते हैं। उत्पल के शरीर वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श वाले हैं, किंतु वे जीव वर्णादि से रहित हैं, क्योंकि जीव तो अमूर्त हैं। अपर्याप्त अवस्था में जीव अनुच्छ्वासकनिश्वासक होता है । उच्छ्वासकनिश्वासक द्वार के छब्बीस भंग बनते हैं । अयोगी एक और अनेक के योग से छह भंग बनते हैं । द्विकसंयोगी बारह और त्रिक-संयोगी आठ भंग बनते हैं । वे इस प्रकार हैं असंयोगी ६ भंग५ उच्छ्वासक एक । २ निःश्वासक एक। ३ नोउच्छ्वासकनिःश्वासक एक । ४ उच्छ्वासक बहुत। ५ निःश्वासक बहुत। ६ नोउच्छ्वासकनिःश्वासक बहुत । ____द्विक संयोगी १२ भंग-- १ उच्छ्वासक एक, निःश्वासक एक । ७ उच्छ्वासक बहुत, नोउच्छ्वासकनिःश्वासक एक। २ उच्छ्वासक एक, निःश्वासक बहुत । ८ उच्छ्वासक बहुत, नोउच्छ्वासकनिःश्वासक बहुत। ३ उच्छ्वासक बहुत, निःश्वासक एक । ६ निःश्वासक एक, नोउच्छ्वासकनिःश्वासक एक । ४ उच्छ्वासक बहुत, निःश्वासक बहुत। १० निःश्वासक एक, नोउच्छ्वासकनिःश्वासक बहुत। ५ " एक, नोउच्छ्वासकनिःश्वासक एक । ११" बहुत, नोउच्छ्वासकनिःश्वासक एक । ६ " एक, नोउच्छ्वासकनिःश्वासक बहुत । १२" बहुत, नोउच्छ्वासकनिःश्वासक बहुत । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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