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________________ भगवती मूत्र-श. ११ उ. ! उपन्य के जीव १८५', मगा वा, अहया उस्सासए य णिस्सासए य, अहवा उस्सासए य णोउस्सासणिस्मासए य, अहवा णिस्सासए य णोउस्सासणिरसासए य; अहवा उस्सासए य णिस्सासए य गोउस्मासणिस्सासए य । अट्ठ भंगा । एए छवोसं भंगा भवंति। २० प्रश्न-ते णं भंते ! जीवा किं आहारगा अणाहारगा ? २० उत्तर-गोयमा ! णो अणाहारगा, आहारए वा, ,अणाहारए वा एवं अट्ट भंगा । कठिन शब्दार्य-सागारोवउत्ता-साकागेपयुक्न-ज्ञानोपयोग महित. अणागारोवउत्ता-अनाकारोपयुक्त-दर्शनोपयोग सहित ।। भावार्थ-१७ प्रश्न-हे भगवन् ! वे उत्पल के जीव साकारोपयोग (ज्ञानोपयोग) वाले हैं या अनाकारोपयोग (दर्शनोपयोग) वाले है ? : १७ उत्तर-हे गौतम ! एक जीव साकारोपयोग वाला है अथवा एक जीव अनाकारोपयोग वाला है । इत्यादि पूर्वोक्त आठ भंग कहना चाहिये। १८ प्रश्न-हे भगवन् ! उन उत्पल के जीवों का शरीर कितने वर्ण, कितने गन्ध, कितने रस और कितने स्पर्श वाला है ? १८ उत्तर-हे गौतम ! पाँच वर्ण, पांच रस, दो गन्ध और आठ स्पर्श वाला है । जीव स्वयं वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श रहित है। १९ प्रश्न-हे भगवन् ! वे उत्पल के जीव उच्छ्वासक हैं, निःश्वासक है, या अनुच्छ्वासकनिश्वासक हैं ? १९ उत्तर-हे गौतम ! १ एक जीव उच्छ्वासक है, या २ एक जीव निश्वासक है, ३ या एक जीव अनुच्छ्वासकनिश्वासक है, ४ या अनेक जीव उच्छ्वासक हैं, ५ या अनेक जीव निःश्वासक हैं, ६ या अनेक जीव अनुच्छ्वासकनिश्वासक हैं, (७-१०) अथवा एक उच्छ्वासक और एक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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