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________________ १८५४ भगवती सूत्र-श. ११ उ. १ उत्पल के जीव १३ कृष्ण के बहुत, नील के बहुत, कापोत का एक, तेजो का एक । १४ कृष्ण के बहुत, नील के बहुत, कापोत का एक, तेजो के बहुत । १५ कृष्ण के बहुत, नील के बहुत, कापोत के बहुत, तेजो का एक । १६ कृष्ण के बहुत, नील के बहुत, कापोत के बहुत, तेजो के बहुत । दृष्टिद्वार, ज्ञान द्वार और योग द्वार का विषय स्पष्ट है । उत्पल के जीव एकान्त मिथ्यादृष्टि और अज्ञानी हैं। वे एकेन्द्रिय हैं, इसलिये उनके केवल एक काययोग ही है, मन योग और वचन योग नहीं हैं। १७ प्रश्न ते णं भंते ! जीवा किं सागारोवउत्ता, अणागारोवउत्ता? १७ उत्तर-गोयमा ! सागारोवउत्ते वा, अणागारोवउत्ते वा अट्ठ भंगा। १८ प्रश्न तेसि णं भंते ! जीवाणं सरीरगा कइवण्णा, कह. गंधा, कहरसा, कइफासा पण्णत्ता ? १८ उत्तर-गोयमा ! पंचवण्णा पंचरसा दुगंधा अट्ठफासा पण्णत्ता । ते पुण अप्पणा अवण्णा अगंधा अरसा अफासा पण्णत्ता। १९ प्रश्न ते णं भंते ! जीवा किं उस्सासगा णिस्सासगा णोउस्सासंणिस्सासगा ? १९ उत्तर-गोयमा ! उस्सासए वा णिस्सासए वा णोउस्सासणिस्सासए वा; उस्सांसगां वा णिस्सासगा . वा णोउस्सासणिस्सा. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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