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- भगवती मूत्र-स.११ उ. १ उत्पल के जीव
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त्रिकर्मयोगी ८ भंग, उच्छ्वासक एक, निःश्वासक एक, नोउच्छ्वासनिःश्वासक एक । २ उच्छ्वामक एक, निःश्वासक एक, नोउच्छ्वासकनिःश्वासक बहुत । ३ उच्छ्वासक एक, निःश्वासक बहुत, नोउच्छ्वासकनिःश्वासक एक । ४ उच्छ्वासक एक, निःश्वासक बहुत, नोउच्छ्वासकनिःश्वासक बहुत । ५ उच्छ्वासक वत, निःश्वासक एक, नोउच्छ्वासकनिःश्वासक एक । ६ उच्छ्वासक बहुत, निःश्वामक एक, नोउच्छ्वासकनिःश्वासक बहुत । ७ उच्छ्वासक बहुत, निःश्वासक वहृत, नोउच्छ्वासकनिःश्वासक एक । ८. उच्छ्वासक बहुत, नि:श्वामक बहुत, नोउच्छ्वासकनिःश्वासक बहुत ।
आहारक द्वार के विषय में यह समझना चाहिये कि विग्रह गति में जीव अनाहारक होता है और शेष समय में आहारक होता है, इसलिये आहारक अनाहारक के आठ भंग कहे गये हैं।
२१ प्रश्न-ते णं भंते ! जीवा किं विरया अविरया विरयाविरया ?
.२१ उत्तर-गोयमा ! णो विरया, णो विरयाविरया, अविरिए वा अविरया वा।
२२ प्रश्न-ते णं भंते ! जीवा किं सकिरिया अकिरिया ? २२ उत्तर-गोयमा ! णो अकिरिया, सकिरिए वा सकिरिया
वा।
२३ प्रश्न ते णं भंते ! जीवा किं सत्तविहबंधगा अट्टविहबंधगा ?
२३ उत्तर-गोयमा ! सत्तविहबंधए वा अट्टविहबंधए वा ।
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