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भगवती सूत्र - श. १० उ. ७-३४ एकोरुक आदि अन्तर द्वीप
सूत्र के अनुसार यावत् पाँच अवतंसक विमान कहे गये हैं। यथा- अशोकावतंसक, यावत् मध्य में सौधर्मावतंसक विमान है । उसकी लम्बाई और चौड़ाई साढ़े बारह लाख योजन है । शक्र का उपपात, अभिषेक, अलङ्कार और अर्चनिका यावत् आत्मरक्षक इत्यादि सारा वर्णन सूर्याभ देव के समान जानना चाहिये, किन्तु प्रमाण जो शकेन्द्र का है वही कहना चाहिये । शक्रेन्द्र की स्थिति दो सागरोपम की है ।
२ प्रश्न - हे भगवन् ! देवेन्द्र देवराज शत्र कितना महाऋद्धिशाली और कितना महासुखी है ?
२ उत्तर - हे गौतम ! वह महाऋद्धिशाली यावत् महासुखी है । वह बत्तीस लाख विमानों का स्वामी है, यावत् विचरता है । देवेन्द्र देवराज शक्र इस प्रकार की महाऋद्धि और महासुखवाला है ।
हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । ऐसा कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं ।
विवेचन - सूर्याभ देव का वर्णन राजप्रश्नीय सूत्र में बहुत विस्तार के साथ किया गया है | यहाँ शकेन्द्र के उपपात आदि के वर्णन के लिये उसी का अतिदेश किया गया है । अतः इसका वर्णन सूर्याभ देव के समान जानना चाहिये ।
।। दसवें शतक का छठा उद्देशक सम्पूर्ण ॥
शतक १० उद्देशक ७-३४
एकोरुक आदि अन्तर द्वीप
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१ प्रश्न - कहि णं भंते ! उत्तरिल्लाणं एगोरुयमणुस्साणं एगो
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