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भगवती सूत्र - श. १० उ. ५ शक्रेन्द्र की सभा एवं ऋद्धि
पण्णत्ता, तं जहा - १ असोगवडेंसए, जाव मज्झे ५ सोहम्म वडेंस । से णं सोहम्मवडेंसए महाविमाणे अद्भुतेरसजोयणसय सहरसाईं आयाम विक्खंभेणं ।
" एवं जह सूरियां तहेव माणं तहेव उववाओ । सक्स य अभिसेओ तहेव जह सूरियाभस्स ॥१॥ अलंकार अच्चणिया तव जाव आयखख त्ति ।”. दो सागमाई ठिई | २ प्रश्न - सक्के केमहासोक्खे |
२ उत्तर - गोयमा ! महिड्दिए जाव महासोवखे । से णं तत्थ वतीसाए विमाणावाससयसहरसाणं जाव विहरह, एवं महिटिए जाव महासोक्खे सक्के देविंदे देवराया ।
* सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति
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भंते! देविंदे देवराया केमहिड्दिए, जाव
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|| दसमस छडओ उद्देसो समत्तो ॥
कठिन शब्दार्थ-डेंगा - अवतंसक - महल, महासोक्खे - महान् सुखवाला । भावार्थ - १ प्रश्न - हे भगवन् ! देवेन्द्र देवराज शक की सुधर्मा सभा
कहाँ है ?
१ उत्तर - हे गौतम! इस जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत से दक्षिण दिशा में, इस रत्नप्रभा पृथ्वी के बहुसम रमणीय भूमि-माग से बहुत कोटाकोटि योजन दूर ऊंचाई में, सौधर्म नामक देवलोक में सुधर्मा सभा है । इत्यादि 'राजप्रश्नीय'
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