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१८४२ : भगवती सूत्र - श.. १० उ. ७-३४ एकोरुक आदि अन्तर द्वीप
१ उत्तर - एवं जहा जीवाभिगमे तहेव णिरवसेसं जाव सुद्ध दंतदीवो ति । एए अट्ठावीस उद्देगा भाणियव्वा । सेवं भंते! सेवं भंते ! त्ति जाव विहरह |
|| दसमस सत्तमादि चोत्तीसइमपज्जेता अट्ठावीसं उद्देसा समत्ता ॥
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कठिन शब्दार्थ - कहिणं कहाँ ।
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भावर्थ - १ प्रश्न - हे भगवन् ! उत्तर दिशा में रहने वाले एकोरुक मनुष्यों का एकोरुरु नामक द्वीप कहाँ है ?
१ उत्तर- हे गौतम! एकोरुक द्वीप से लगाकर यावत् शुद्धदन्त द्वीप तक समस्त अधिकार जीवाभिगम सूत्र में कहे अनुसार कहना चाहिये । प्रत्येक atibfवषय में एक-एक उद्देशक है। इस प्रकार अट्ठाईस द्वीपों के अट्ठाईस उद्देशक होते हैं ।
हे भगवन् ! यह इसी प्रकार । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार हैं । ऐसा कहकर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं ।
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विवेचन - दक्षिण दिशा में अट्ठाईस अन्तरद्वीप हैं और इसी प्रकार उत्तर दिशा में भी अट्ठाईस अन्तरद्वीप हैं। दक्षिण दिशा के अन्तरद्वीपों का वर्णन पहले नौवें शतक में हो गया है । उसी के अनुसार उत्तर दिशा के अन्तरद्वीपों का वर्णन भी जानना चाहिये । इन सब के विस्तृत वर्णन के लिये जीवाभिगम सूत्र को तीसरी प्रतिपत्ति के पहले उद्देशक का अतिदेश किया गया है ।
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दसमं सयं समत्तं ॥
।। दसवें शतक के ७ से ३४ उद्देशक सम्पूर्ण ॥
॥ दसवां शतक सम्पूर्ण ॥
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