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________________ १८०८ - भगवती सूत्र-श. १० उ. ३ अश्व की खु खु ध्वनि और भाषा के भेद प्रकार की भाषाओं में-'हम आश्रय करेंगे, शयन करेंगे, खड़े रहेंगे, बैठेंगे और लेटेंगे,' इत्यादि भाषा, क्या प्रज्ञापनी भाषा कहलाती है और ऐसी भाषा मृषा (असत्य) नहीं कहलाती? १५ उत्तर-हाँ, गौतम ! उपरोक्त प्रकार की भाषा प्रज्ञापनी भाषा है और वह भाषा मृषा नहीं कहलाती। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार हैऐसा कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं। विवेचन-सत्या, असत्या, सत्यामृषा और असत्यामृषा, इस प्रकार भाषा के मूल चार भेद हैं । लौकिक व्यवहार की प्रवृति का कारण होने से असत्यामृषा भाषा को 'व्यवहार भाषा' कहते हैं । इसके बारह भेद हैं । यथा १ आमन्त्रणी-आमन्त्रण करना अर्थात् किसी को सम्बोधित करना । जैसे-हे भगवन् ! हे देवदत्त ! इत्यादि । २ आज्ञापनी - दूसरे को किसी कार्य में प्रेरित करने वाली भाषा 'आज्ञापनी' कह लाती है । जैसे-जाओ, लाओ, अमुक कार्य करो, इत्यादि । . ३ याचनी-याचना करने के लिये कही जाने वाली भाषा। ४ पृच्छनी-अज्ञात तथा संदिग्ध पदार्थों को जानने के लिय प्रयुक्त भाषा। - ५ प्रजापनी-उपदेश देने रूप भाषा 'प्रज्ञापनी' है । यथा-प्राणियों की हिंसा से निवृत्त पुरुष भवान्तर में दीर्घायु और नीरोग शरीरी होते हैं। ६ प्रत्याख्यानी-निषेधात्मक भाषा 'प्रत्याख्यानी' कहलाती है। ७ इच्छानुलोमा-दूसरे की इच्छा का अनुसरण करना । जैसे-किसी के द्वारा पूछा जाने पर उत्तर देना कि जो तुम करते हो, वह मुझे भी अभीप्ट है। ८ अनभिगृहीता-प्रतिनियत (निश्चित) अर्थ का ज्ञान न कराने वाली भाषा 'अनभिगृहीता' है। ९ अभिगृहीता-प्रतिनियत अर्थ का बोध कराने वाली भाषा 'अभिगृहीता' है। १० संशयकरणी-अनेक अर्थों के वाचक शब्दों का जहाँ प्रयोग किया गया हो और जिसे सुनकर श्रोता संशय में पड़ जाय, वह भाषा 'संशयकरणी' है । जैसे-'सैन्धव' शब्द सुनकर श्रोता संगय में पड़ जाता कि नमक लाया जाय या घोड़ा (क्योंकि सैन्धव शब्द के Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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