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________________ भगवती सूत्र श. १० उ. ८ चमरेन्द्र के प्राय स्त्रियक देव दो अर्थ हैं - घोड़ा और नमक ) । ११ व्याकृता - स्पष्ट अर्थ वाली भाषा 'व्याकृना' कहलाती है । १२ अव्याकृता - अस्पष्ट उच्चारण वाली अथवा अति गंभीर अर्थ वाली भाषा । 'हम आश्रय करेगें' इत्यादि भाषा यद्यपि भविष्यत्कालीन है, तथापि वर्तमान सामीप्य होने से प्रज्ञापनी भाषा है और वह असत्य नहीं है । इसी प्रकार आमन्त्रणी आदि के विषय में जानना चाहिये । Jain Education International ॥ दसवें शतक का तृतीय उद्देशक सम्पूर्ण ॥ शतक १० उद्देशक ४ १८०९ चमरेन्द्र के प्रायस्त्रिंशक देव १ - तेणं कालेनं तेणं समएणं वाणियग्गामे णयरे होत्था, वष्णओ। दूइपलासए चेहए । सामी समोसढे । जाव परिसा पडि गया । तेणं कालेणं तेणं समरणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्टे अंतेवासी इंदभूई णामं अणगारे, जाव उड्दजाणू जाव विहरइ । तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी सामहत्थी णामं अणगारे पगइभद्दए, जहा रोहे, जाव उजाणू जाव विहरइ । तरणं से सामहत्थी अणगारे जायसड्ढे जाव उट्ठाए उट्ठेइ उट्ठित्ता जेणेव भगवं गोयमे तेणेव उवागच्छछ उवागच्छित्ता भगवं गोयमं तिक्खुत्तो जाव पज्जुवासमाणे एवं For Personal & Private Use Only www.jalnelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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