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________________ भगवती सूत्र - शः १० उ. ३ देवों के मध्य में होकर तिलने की क्षमता देवों के मध्य में होकर निकलने की क्षमता २ प्रश्न - अप्पड्ढीए णं भंते ! देवे से महड्डियरस देवस्स मज्झ मज्झेणं वीडवपूजा ? २ उत्तर - गो इण समट्टे | ३ प्रश्न - समिड्ढीए णं भंते! देवे समड्ढीयस्स देवरस मज्झंमझेणं वीवजा ? ३ उत्तर - णो इण समट्टे, पमत्तं पुण वीइवएज्जा । ४ प्रश्न - से णं भंते! किं विमोहित्ता प्रभू, अविमोहित्ता पत्र ? ४ उत्तर - गोयमा ! विमोहित्ता पभू, णो अविमोहेत्ता पभू । ५ प्रश्न - से भंते! किं पुचि विमोहित्ता पच्छा वीडवराजा पुचि वीइवइत्ता पच्छा विमोहेज्जा ? ५ उतर- गोयमा ! पुव्विं विमोहिता पच्छा वीइवएज्जा, णो पुवि वीडवइत्ता पच्छा विमोहेज्जा । १८०१ আম कठिन शब्दार्थ - अप्पडीए- अल्प ऋद्धिक, बाइवएज्जा-जाता है-उल्लंघन करता है, विमोहित्ता- विनोहित करके । भावार्थ - २ प्रश्न - हे भगवन् ! क्या अल्पऋद्धिक (अल्प शक्ति वाला) देव महद्धिक (महा शक्ति वाले ) देव के बीच में से होकर जा सकता है ? २ उत्तर - हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है, ( वह उनके बीचोबीच होकर नहीं जा सकता ) । ३ प्रश्न - हे भगवन् ! सर्माद्धक ( समान शक्तिवाला) देव, समद्धिक देव के Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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